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Monday, December 15, 2014

sir choturam speech

अखिल भारतीय जाट महासभा के लायलपुर अधिवेशन मे 9 अप्रैल 1944 को चौधरी छोटूराम ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया था , और जाट गज़ट मे इसे शब्दाश: प्रकाशित किया गया था | चौधरी साहब का उस वक़्त का यह भाषण आज के माहौल मे सभी धर्मो के जाटों के लिए एक सबक हैं | यह थोड़ा लंबा जरूर हैं पर सभी जाट भाइयो से अनुरोध हैं की एक बार इसे जरूर पढे और इस पर सोच विचार करे की हम उस महान आत्मा की विचारधारा पर कितना अमल कर रहे हैं | चौधरी छोटूराम के इस भाषण मे पूरी जाट कौम की तरक्की का मंत्र हैं | कुछ लोगो का मानना हैं अब जमाना बदल गया हैं परंतु इस भाषण को पढ़ने से और आज के हालत को देखते हुए तो ऐसा लगता हैं कि हम आज भी उसी मोड़ पर खड़े हैं |

' हम एक ऐसे नाजुक दौर से गुजर रहे हैं कि हमें अपनी गतिविधियों एवं भाषणों मे बहुत सावधानी बरतनी चाहिए | इस मौके पर यदि हम कोई गलत कदम उठा लेते हैं तो हमारे आंदोलन को अपूरणीय क्षति पहुँच सकती हैं | हमारे द्वारा बोला जाने वाला हर शब्द उचित एवं संतुलित होना चाहिए | हमारे विरोधियों और आलोचकों की कमी नहीं हैं | वे हमारे कथनों की व्याख्या अपनी सहूलियत के मुताबिक ऐसे तरीके से करेंगे कि हमारे उद्देश्यों को नुकसान हो और हमारे विरुद्ध हर प्रकार का भ्रामक प्रचार किया जा सके | इसलिए मैं काफी सोच-समझकर , और पूरी जिम्मेवारी के साथ , पंजाब , भारत और पूरी दुनिया को दृष्टि मे रखकर बोलने जा रहा हूँ |

सर्व प्रथम मैं जाट आंदोलन के उद्देश्यों , कार्यकर्मों और कार्यक्षेत्र के विषय में बताना चाहता हूँ | बहुत से भ्रम हैं , और बहुत सी शंकाए पैदा कर दी गई हैं , और हमारे विरुद्ध मिथ्या प्रचार किया जा रहा हैं | जान - बूझकर अथवा अंजाने मे उल्टी और बेहूदा आलोचनाए की गई हैं जिसके कारण गैर-जाट समुदाए में या तो भ्रम पैदा हो गया हैं , या हो सकता हैं कि उन के द्वारा पैदा कर दिया गया हैं |

जाट महासभा की स्थापना सन 1905 में हुई थी | मैं इस के अस्तित्व मे आने के समय से ही इस का सदस्य चला आ रहा हूँ | इसकी गतिविधिया मुख्यता संयुक्त प्रांत (यू.पी) के उत्तरी -पश्चिमी जिलों , पंजाब के दक्षिणी -पूर्वी जिलों और किसी सीमा तक राजपूताना के उत्तरी-पूर्वी राज्यों तक सीमित हैं | पिछले कुछ वर्षों से इसे पंजाब के मध्यवर्ती जिलों में जाना जाने लगा हैं | पिछले वर्ष सभा के लाहौर अधिवेशन में पंजाब के लिए एक प्रांतीय महासभा की स्थापना करने का निर्णय लिया गया था , और इसका कार्य बिलकुल संतोषजनक रहा हैं | लाहौर चूंकि पंजाब की राजधानी हैं , और वहाँ से कई अखबार निकलते हैं , इसलिए प्रायः अनजाने में ही इन समाचार पत्रों के माध्यम से जाट महासभा को काफी प्रचार मिला हैं |

भारत में जाटों की कुल जनसंख्या डेढ़ करोड़ (1941) से अधिक हैं , और यह मुख्यता भारत के उत्तर-पश्चिम भाग मे इकट्ठी हैं | इन में से एक बड़ी संख्या हिन्दू जाटों की हैं | सिख और मुसलमान जाटों की संख्या भी काफी बड़ी हैं | कुछ हजार ईसाई जाट भी हैं | अधिकतर जाट देहाती क्षेत्रों मे बसे हुए हैं और भूमि जोत पर आश्रित हैं | शैक्षणिक सुविधाए , व्यापारिक एवं औधोगिक गरीविधियाँ शहरों और कस्बों मे केन्द्रित हैं ; इसलिए शिक्षा और आर्थिक पिछड़े हुए हैं | परिणामतः शिक्षा और धन से उनका सामाजिक स्तर भी नीचा हैं | जाट बहुत सी बुराइयों के भी शिकार हो रहे हैं | यदि किसी कौम के पास शिक्षा और धन का अभाव हो और इसका सामाजिक स्तर भी नीचे धंस गया हो , तो इसके राजनीतिक स्तर और महत्व का वर्णन करने की बजाए कल्पना कर लेना ही अच्छा होगा | यह वास्तव मे ही आश्चर्य की बात हैं कि पंजाब में जाटों की संख्या पूरे भारत की कुल जाट आबादी के आधे से भी ज्यादा हैं , परंतु यहाँ उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय हैं | इन की आबादी के एक छोटे से भाग को छोडकर वे भिन्न भिन्न नाम की जोतों (जमाईं) के स्वामी हैं | प्रत्येक फसल की कटाई के बाद वे करोड़ो रुपया भूमिकर और सिंचाई कर के रूप मे सरकार के देते हैं | प्रत्येक जिले से हजारों की संख्या मे जाट सेना मे भर्ती हैं | इन में लाखों की संख्या में इस विश्व-महायुद्ध के दौरान (1939-45) सेना मे गए हैं | उन्होने शोर्य , पराक्रम और बलिदान का ऐसा शानदार प्रदर्शन किया हैं जिस पर दुनिया भर की सर्वाधिक बहादुर कौम भी गर्व करे | लेकिन इस सब के बावजूद जाटों के विषय में कोई नहीं सोचता हैं किसी को भी इन की चिंता नहीं हैं ! दूसरी जातियों के लोग , जिन की संख्या नगण्य सी हैं इनकी वीरता और बलिदान का फल भोग रहे हैं | इन के (जाटों के) दम पर लाभान्वित होने वाले ये लोग कभी ही देश के लिए कोई आर्थिक या सैनिक योगदान देते होंगे , परंतु क्योंकि ये शहरों मे बसते हैं इस कारण शिक्षा के क्षेत्र मे उन्नति कर गए और अफसर बन गए हैं | जाटों के शोर्य और बलिदानों का आकलन तमगों (मेडल्स) के आधार पर अच्छी तरह से किया जा सकता हैं | भारतियों को दिये गए सात विक्टोरिया क्रासों ( सर्वोच्च सैनिक सम्मान ) मे से तीन पंजाबियों ने जीते हैं , और ये सभी ( तीनों ) जाट हैं | इन मे से सूबेदार रिछपाल और छैलूराम वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गए | इस जिले का हवलदार प्रकाश सिंह जीवित हैं | एक भारतीय को दिया गया डी.एस.ओ का एक मात्र तमगा कैप्टन मेहर सिंह पुत्र सरदार त्रिलोक सिंह ने जीता हैं जो इसी जिले का जाट हैं | वे लोग , जिन की कौम को कोई श्रेय प्राप्त नहीं हैं , परंतु मजहब-हिन्दू , मुसलमान , सिख , ईसाई के नाम पर दूसरों की सेवाओं का फल चखने के आदि हो गए हैं , किसी दूसरी कौम की पहचान बनने देना नहीं चाहते ! वे केवल यह चाहते हैं कि इन धर्मो मे आने वाली बड़ी कौमो के त्याग और बलिदान का लाभ वे अकेले ही लेते रहे-डकारते रहे ! उन के द्रष्टिकोण से इस से अच्छा कुछ नहीं कि अपने आप थोड़ी सी भी तकलीफ उठाए बिना अथवा प्रयत्न और त्याग - बलिदान किए बिना सारे लाभों को वे ही भोगते रहे ! यद्द्पि पंजाब के जाटों की सामाजिक और शैक्षिक स्थिति अन्य प्रान्तों मे बसने वाले जाटों की अपेक्षा थोड़ी से बेहतर हैं , परंतु जो स्तर काफी पहले प्राप्त कर लेना चाहिए था उस से अब भी काफी नीचे हैं | ' पंजाब जाट महासभा ' की स्थापना जाटों की स्थिति मे सुधार लाने के लिए की गई थी | इस की बहुत सारी गतिविधियों मे लाहौर से एक दैनिक अखबार निकालना शामिल करने का निर्णय लिया गया हैं | इसकी जानकारी मिलते ही हमारे बहुत सारे भाई विचलित हो गए हैं और अपना मानसिक संतुलन एवं शांति खो बैठे हैं ! वे बहुत चिंतित हैं ! इन भाइयों के चैन के लिए मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि जाट महासभा के उद्देश्यों मे ऐसा कुछ भी नहीं हैं जिस से इन को नुकसान पहुचता हो ! हम जाटों की सामाजिक-आर्थिक दशा सुधारना चाहते हैं | हमारा उन की धार्मिक राजनीति से कुछ लेना देना नहीं हैं | हमारे जलसों के मंचों पर धार्मिक बहस को कोई जगह नहीं मिलेगी | हम स्वयं को इस तरह की राजनीति मे नहीं उलझाएंगे | हम राजनीतिक मामलों मे केवल इस हद तक संबंध रखेंगे कि हिन्दू , मुसलमान , सिख और इसाइयों के नाम पर जो भी विशेषाधिकार दिये जाते हैं उन मे जाटों को उन का उचित हिस्सा अवश्य मिले | हिस्से से थोड़ा कम मे भी हम चला लेंगे | यदि कोई राजनेता हमारे हितों की रक्षा का आश्वासन दे दे , या जाटों के लिए निर्धारित ( आरक्षित ) किसी उच्च पद पर किसी उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति की नियुक्ति कर दी जाती हैं तो हम सहन कर लेंगे ; लेकिन यदि हर मामले मे , हर बार अयोग्य व्यक्ति जाट समुदाय के अधिकारों का अतिक्रमण करते रहे तो स्वाभाविक हैं कि हमे शिकायत होगी !

हम आर्थिक सांझा हितों की राजनीति से नहीं डिगेंगे | उदाहरण के लिए , मूल्यों पर नियंत्रण का मामला , आवश्यक उपजों को पंजाब अथवा देश से बाहर भेजने पर पाबंदी का मामला , प्रान्त के उद्योगो और व्यापार में हिस्सेदारी , कृषि उपजों के लाने ले जाने पर चुंगी महसूल आदि ये सब आर्थिक सवाल हैं , परंतु इन सब का राजनीतिक महत्व भी हैं | लेकिन ये सब सवाल अपने स्वरूप मे ऐसे हैं कि कोई भी कृषक जाति इन के ऊपर जाटों से मतभेद नहीं करेगी |

हम दूसरों के धार्मिक संगठनो मे कभी हस्तक्षेप नहीं करेंगे ; लेकिन हम इस बात को खुशी से स्वीकार करते हैं कि जब तक भारत के संविधान ( भारत संबंधी अङ्ग्रेज़ी कानून , भारत विधेयक 1935 ) के तहत राजनीतिक अधिकारों का बंटवारा मजहबों पर आधारित , हर धर्म के लोगो को धार्मिक आधार पर संगठित होने और अपने संगठनो को मजबूत करने का अधिकार हैं | क्योंकि कोई भी समुदाए जो इस तरह संगठित नहीं होगा वह घाटे मे रहेगा | हमारे जाट समुदाए मे हर व्यक्ति कि छूट होगी कि चाहे वह कांग्रेस मे शामिल हो जाए अथवा हिन्दू महासभा , अकाली दल , लिबरल फ़ैडरेशन या इंडियन क्रिश्चियन एशोसिएशन मे अपने विश्वास और अपनी मान्यता के अनुसार इन मे से किसी मे शामिल हो जाए | अपनी व्यक्तिगत हैसियत मे वह पाकिस्तान कि मांग कर सकता हैं ; या भारत की एकता व अखंडता के लिए प्रचार कर सकता हैं अथवा पूर्ण स्व-शासन की मांग कर सकता हैं ; परंतु कोई भी इन बातों का विरोध अथवा समर्थन जाट महासभा के मंच से नहीं कर सकेगा |

हमने ( जाट महासभा ने ) राजनीति से अलग रहने का निर्णय इसलिए नहीं लिया हैं , क्योंकि हमारे लिए इन मुद्दो का महत्व नहीं हैं ; इस लिए भी नहीं कि हम किसी ताकत से भय खाते हैं , बल्कि इसलिए लिया हैं कि इस के दो खास कारण हैं | पहला यह कि राजनीति के क्षेत्र मे काम करने वाले असीमित साधनो वाले दूसरे संगठन हैं | जाटों के पास साधन सीमित हैं , जिन को जाटों के आर्थिक , शैक्षिक और सामाजिक स्तर को दूसरी प्रगतिशील जातियों के स्तर के समानान्तर लाने के कार्यों पर खर्च किया जाना चाहिए | उचित शिक्षा प्राप्त कर लेने पर वे जिस किसी भी पार्टी मे जाएंगे , उस पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ समानता के दर्जे और टीम-भावना से कार्य कर सकेंगे | एक गरीब अशिक्षित जाट को किसी भी पार्टी मे कोई सम्मान अथवा पद नहीं मिलेगा | वह तो केवल एक संदेशवाहक छोकरा या नेताओं का व्यक्तिगत नौकर बन कर वह रहेगा ! दूसरे आम राजनीति मे सभी जाटों का मतैक्य नहीं हैं , और न ही सकना स्वाभाविक एवं संभव ही हैं | यहाँ बीरदारी के मंच से उन्हे राजनीतिक चर्चा करने की इजाजत देने से आपसी झगड़े होंगे | हमारा जाट महासभा के मंच को केवल आर्थिक , शैक्षिक और सामाजिक उत्थान के मुद्दो पर चर्चा तक सीमित रखने का यही कारण हैं |

जाट महासभा का किसी दूसरी कौम से कोई विवाद या टकराव नहीं हैं | हमारे आंदोलन का केवल मात्र उद्देश्य अपनी बीरदारी के आर्थिक शैक्षिक एवं सामाजिक उत्थान करने की दिशा मे रचनात्मक एवं ठोस उपाय करना हैं | हमें आम तौर पर सभी समुदयों और जातियों के साथ सहयोग कर के काम करना हैं ; और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति के बावजूद यदि कोई हमारे प्रति दुर्भावना रखे तो दोष हमारा नहीं हैं ! हम दूसरी जातियों के साथ उस हद तक सहयोग करेंगे , जहा तक करना मनुष्य के लिए संभव हैं | हम सब के प्रति प्यार-प्रेम बनाए रखेंगे | हम सांप्रदायिक सदभाव की प्राप्ति के लिए सदा प्रयत्नशील रहेंगे | हम पारस्परिक विद्वेष , घृणा और तनाव के मूल कारणो को समाप्त करने की शिक्षा मे प्रयासरत रहेंगे | यदि इस सब के बावजूद कोई हमारी कौम को ज़ोर ज़बरदस्ती , बिना उचित कारणों के कुचलने की कोशिश करेगा तो हम अपना बचाव करने के लिए मजबूर होंगे , वह भी उस हद तक जहां तक आत्मरक्षा के लिए आवश्यक होगा |

जाटों को ही क्यों आतंकित और परेशान किया जाए ! पंजाब मे सभी समुदायों , जैसे ब्राह्मण , खत्री , शिया , सुन्नी , आरोड़े , अग्रवाल , महाजन , कायस्थ , कुरैशी , अरई, अवन, सैयद , मोमिन और भी न जाने कितनों के अपने अलग जातिय सम्मेलन होते रहते हैं | राजपूत , गुजर ,सैनी ,लबाना और अहलुवालिया सभाए हैं | खालसा ब्राथरहूड जैसी सोसाईटिया हैं , अथवा विभीन्न समुदायों के अपने मजहबी सम्मेलन हैं | इस के अतिरिक्त हमे कभी कभी कश्मीरियों और पारसियों के विषय मे भी सुनने को मिलता हैं | पिछले दो वर्षो के दौरान ' चैंबर ऑफ ट्रेड एंड कॉमर्स ' भी काफी चर्चित रहा हैं | इन मे से कुछ पेशो से संबन्धित हैं | कश्मीरी सम्मेलन अपने एक व्यवसाय से संबन्धित हैं | हिन्दू , मुसलमान और सिख अपने स्वयं के मजहब का ख्याल किए बिना इन मे भाग लेते रहे हैं | यदि कोई कबीला अथवा समुदाए एक से अधिक धर्मो मे फैला हुआ हैं , ऐसे कबीले अथवा समुदाए के सभी लोग अपनी जाति-समुदाए के संगठनो कि गतिविधियों मे भाग लेते हैं - जैसे हिन्दू और मुसलमान , अथवा हिन्दू और सिख , अथवा हिन्दू , मुसलमान और सिख बिना धार्मिक विश्वास का लिहाज किए , और बिना किसी औपचारिकता के ! परंतु हमने किसी भी ओर से कोई शिकायत या आपत्ति नहीं सुनी हैं | वास्तव मे ही यह बात आश्चर्यजनक हैं कि अपना संगठन बनाने पर केवल जाट समुदाए को ही क्यों त्रासा और प्रताड़ित किया जा रहा हैं | हिन्दुओ का कहना हैं कि क्या मुसलमान -गैर मुसलमान , जमींदार -गैर जमींदार और शहर देहात के नाम पर विभाजन पर्याप्त नहीं थे । जो अब एक नया विभाजन जाट-गैर जाट के नाम से जोड़ा जा रहा हैं ? आर्य समाजियों का कहना हैं कि इस प्रकार का भेद वेदो और महर्षि दयानंद के सिद्धांतों के विरुद्ध हैं | सीखो कि आपत्ति हैं कि जाट-गैर जाट का भेद पंथ के खिलाफ हैं और सीखो का विभाजन करने के लिए किया जा रहा हैं | मुसलमान यह दलील देते हैं कि इस प्रकार कि भेद-रेखा खींचना कुरान के नियमो के खिलाफ हैं और मुसलमानों को कमजोर करने के लिए ऐसा किया गया हैं |

ये शिकायते और आपत्तियाँ चिंताजनक भी हैं और उत्साहवर्धक भी | धार्मिक विषय हमारी महासभा के कार्य क्षेत्र के बाहर हैं | हम किसी धर्म के सिद्धांतों पर चोट नहीं करते ; और हम ऐसा करे भी क्यों ? क्योंकि हमारा तो विशास है कि एक अच्छा मुसलमान , एक अच्छा हिन्दू , एक अच्छा सिख और एक अच्छा ईसाई , एक अच्छा इंसान , एक अच्छा पंजाबी , एक अच्छा हिंदुस्तानी , और एक अच्छा पड़ोसी भी होगा ! हम मजहबी राजनीति पर किसी बहस कि इजाजत नहीं देते | जाट महासभा शुद्ध राजनीति को भी टालती हैं | अपनी व्यक्तिगत हैसियत मे प्रत्येक जाट किसी भी तरह कि राजनीति का प्रचार करने और किसी भी सामाजिक संगठन का सदस्य बनने के लिए स्वतंत्र हैं | क्या यह हमारे प्रति अन्याय नहीं हैं कि इन हालातों मे भी कुछ लोग हम पर विभाजन पैदा कर के किन्ही धार्मिक संगठनो को कमजोर करने कि साजिश का आरोप लगाते हैं ? इस से अधिक अनुचित और क्या होगा ?

हम यह बात साफ कर देना चाहते हैं कि हम ऐसी किसी भी स्थिति मे कोई सम्झौता नहीं करेंगे जहा हिन्दू-मुसलमान -सिख और ईसाई , हमे पुश्तैनी दास मानते हो , अथवा दसो कि भांति हमारे साथ बर्ताव करे ! और न ही हम उन के इस तथाकथित अधिकार को मानेंगे कि वे -हिन्दू-सिख- मुसलमान-ईसाई-जाटों को पशु कि भांति किसी भी धार्मिक कार्यकर्म मे अथवा अन्य क्रिया-कलापों मे अपनी मर्जी के मुताबिक जब चाहे और जहा चाहे हांक ले जाये ! हम ऐसे धार्मिक आक्रमण को सहन नहीं करेंगे | हम अपने तौर अपने तरीके से सभी धर्मो और उन के गुरुओ पीर-पैगंबरों , ऋषि-मुनियो और देवी-देवताओ को सम्मान देते हैं |

जाति और धर्म के कारण भेद का बहाना : हिन्दू धर्म के सुधारक जैसे आर्य समाज ; और इसी प्रकार दूसरे भी , जैसे मुसलमान और सिख यह कहते हैं कि जातिवाद एक अभिशाप हैं , जिसे कबीला संस्था जीवित रखे हुए हैं ! इस बात को सभी मानेंगे कि जातिवाद और जन्म-भेद , जहा तक उन का संबंध धर्म और अध्यातम से हैं , बिलकुल भीन्न हैं | लेकिन हमे इन शब्दों के अर्थो को गंभीरता और बारीकी से समझने का प्रयास करना चाहिए | इस का अर्थ हैं कि कोई भी व्यक्ति किसी खास परिवार मे जन्म लेने से महान नहीं बन जाता ; और न ही जन्म के आधार पर किसी को स्वर्ग मे स्थान मिलने वाला हैं | इसी प्रकार यह बात भी नहीं हैं कि किसी खास धर्म या परिवार मे जन्म के आधार पर , आध्यात्मिक दर्ष्टिकोन से , स्वर्ग मे किसी को छोटा या बड़ा समझा जाएगा ! कर्मो कि गुणात्मक द्रष्टि से विवेचना कर के अच्छों को इनाम और बुरों को सजा मिलेगी ! यदि कोई यह कहे कि आध्यात्मिक क्षेत्र कि भांति ही सांसारिक मामलों मे भी पालन पोषण , जाति-खून निरर्थक और महत्वहीन हैं , और कि आध्यात्मिक क्षेत्र कि भांति ही दुनियावी मामलों मे भी लोगो को धर्म को छोड़ कर अन्य किसी भी आधार का वर्गीकर्त नहीं किया जा सकता , और कर्मो के अलावा और कोई संगत और सार्थक मापदंड नहीं हैं , तो यह बात ठीक नहीं लगती ! सांसारिक क्षेत्र मे परिवार , पालन-पोषण , विधत्ता , धन , अधिकार , दर्जा और प्रभाव ऐसे तत्व हैं जो किसी व्यक्ति के महत्व का निर्धारन करते हैं ! इसी प्रकार रक्त-संबंध और लालन-पालन बिलकुल स्वाभाविक बाते हैं , और कई बार ये ऐसे आध्यात्मिक गुणो को पैदा कर देते हैं जो वासत्व मे अद्भुत और सम्माननीय होते हैं |

यह कहना भी पूरी तरह गलत हैं कि जन्म और जाति के संबंधो को स्वीकार करना और इन्हे महत्व देना आध्यात्मिक अथवा धार्मिक मान्यताओ , मार्यदाओं, और आदेशो के विरुद्ध हैं | यूरोप के ईसाई समुदाय स्वयं को एंगेलों सैक्शन , जर्मन , नोर्दिंस , लैटिन्स आदि कहने मे कोई शर्म महसूस नहीं करते | एशिया के मुस्लिम समुदाए खुद को तुर्क , अरब और अफगान कहते हैं , परंतु इस प्रकार के कथनो के बारे किसी को कोई आपत्ति नहीं | उत्तर-पश्चिम सीमा पार के हमारे पड़ोसी बड़े गर्व से अपने को यासाफिञ्जय , और महासूद और वज़ीरी कहते हैं | अलीगढ़ के एक नौजवान ने मुझे बताया कि रसूल करीम बड़े गर्व से कहा करता था : ' मैं मोहम्मद हू; मैं अरब हू और मैं हाशमी भी हू ' |

यदि तुर्क और अफगान स्वयं को क्रमशः तुर्क और अफगान कहने से , गैर -मुसलमान नहीं हो जाते ; ब्राह्मण और खत्री स्वयं को ब्राह्मण और खत्री कहने से गैर हिन्दू नहीं बन जाते ; अहलुवालिया और रामगढ़िया स्वयं को क्रमशः अहलुवालिया और रामगढ़िया कहने से गैर -सिख नहीं बन जाते ; तो जाटों को , यदि वे स्वयं को जाट कहते हैं , इस्लाम विरोधी , सिख विरोधी अथवा वैधिक सिद्धांतों के विरोधी के रूप मे पेश करने का क्या औचित्य हैं ?

दूसरे लोग अपने नामों के साथ अपनी जातियों को उपनाम के रूप मे जोड़ते हैं , यथा , सैयद , कुरैशी , सिद्दीकी , अंसारी , शर्मा , नातन , वर्मा , सोढ़ी , बेदी , जेटली , चावला , चड्डा , बजाज आदि; और उन के विरुद्ध कोई फतवा अथवा धर्मादेश , हिन्दू , सिख , अथवा इस्लाम धर्म के नाम पर जारी नहीं किया जाता ! इसके विपरीत अगर कोई अपने आप को जाट कौम का बेटा कह देता हैं तो ऐसा लगता हैं मानो वह अपने धर्म से गिर गया हो | वह भ्रष्ट हो जाता हैं , और भगवान विरोधी बन जाता हैं ; और उसने बहुत बड़ा पाप कर दिया , उसे नरक मे फेंकना पड़ेगा ! धर्म के ये ठेकदार भी जाट सगठनों कि भर्त्सना और बदनामी करते हैं और उन्हे बुरी नजर से देखते हैं | यह क्या आध्यात्मवाद हुआ ? यह कैसा वैदिक संदेश हैं ? इस धर्मदेश या फतवा का क्या आधार हैं ? कितनी निरर्थक हैं ये दलील ! ये कैसा इंसाफ हुआ ?

आपत्तियों के मुख़्य कारण: इन आपत्तियों का कारण न तो इस्लाम के प्रति समर्पण भाव हैं; न सिख पंथ के प्रति सेवा भावना इसका कारण हैं ; न हिन्दू धर्म कि रक्षा भाव ! परंतु इस का कारण निहित स्वार्थों कि रक्षा कि कोशिश हैं ! हमारी जाट कौम गहरी नींद मे थी ; उन्नति -प्राप्त वर्ग , खास तौर पर शहरी शिक्षित वर्ग , और व्यापारी वर्ग हमारे अधिकारों को चटकर जाते थे | जब उन्होने देखा कि जाट इकट्ठे हो रहे हैं -संगठित हो रहे हैं , और अपने अधिकारों पर दावा जताने लगे हैं , तो वे (शहरी) बेचैन हो उठे हैं ! उन ने सोचा धार्मिक मुद्दे सहायक हो सकते हैं | वे जाटों को मूर्ख और असभ्य मानते रहे थे ; वे उन कि सादगी और अज्ञानता का मज़ाक उड़ाते रहे थे ; जाटों कि साफ़गोई को उन मे सभ्यता और संस्कृति का आभाव माना जाता था ! वे लोग अब इन भोले -भाले , सहनशील , गूंगे बहरे और अशिक्षित गरीब जाटों के जाग जाने के कारण दुखी हैं , चिंतित और विचलित हैं ; और उन लोगो ने उन्हे नींद मे ही बनाए रखने के लिए षड्यंत्र रचा हैं ; इन के साथ भेड़-बकरियों कि तरह बर्ताव करते रहने , और इन कि जुबानों और दिमागो को धर्म कि नशीली खुराक देकर बंद कर देने का षड्यंत्र रचा हैं ; वे डरे हुए हैं कि जाट यदि जाग गए तो उन मे बदले कि भावना आ सकती हैं ! धार्मिक निहित स्वार्थो के अतिरिक्त राजनीतिक स्वार्थ भी हैं | इस तरह के राजनेताओ और उन कि पार्टियों मे न तो कोई सेवा भाव होता हैं और न ही आध्यात्मिक भावना उत्साह | जो लोग हमारा विरोध कर रहे हैं , चिलल-पों कर रहे हैं और हमारे विरुद्ध झूठा प्रचार कर रहे हैं , वे आम तौर पर अपने धर्म अथवा मजहब के प्रति भी निष्ठावान नहीं हैं ! दूसरे शब्दो मे उन मे अपने मत के अनुसार प्रतिदिन प्रार्थना करने जैसे धार्मिक अनुष्ठान करने का अभ्यास नहीं हैं | ये ही संस्थाए , पार्टिया , और समुदाए हैं , जो आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र मे किए जा रहे हमारे प्रयासो को विफल कर देते हैं , और हमारी सभी उपलब्धियों को चट कर जाते हैं ! वे हमारे शोषक हैं , शुभेच्छु और प्यारे नहीं | वे केवल मात्र अपनी भलाई मे रुचि रखते हैं | वे हमारी कष्ट कमाई पर डाका डालने कि योजनाए बना रहे हैं ; वे हमारी जागृति , प्रगति और आत्मरक्षा एवं आत्मोत्थान के उपायों और प्रयासो को देख कर बेचैन हैं , बौखलाए हुए हैं ; यह देखकर उदास हैं कि उन का प्रिय शिकार शीघ्र ही बच निकालने वाला हैं ! वे हम पर दोषारोपण करके , और अपने पापों और कुक्र्त्यों पर पर्दा डालने कि कोशिश करते हैं; वे बहुत चालाक बनने कि कोशिश करते हैं , जैसे कि वे हमारे भाग्य-विधाता हों, हमारे जीवन-दाता हों और हमारे भविष्य के निर्माता हों ! ये लोग हमारी जागृति को देख कर भय का अनुभव कर रहे हैं ; वे हमारी उन्नति को पचा नहीं पा रहे हैं और बहुत बेचैन हों उठे हैं ! हमारी जागृति को वे अपनी मौत का संकेत मान रहे हैं ; भगवान का मुखौटा लगाए हुए ये शैतान बेचैन हैं ! इसका दोष हम पर कैसे लगाया जा सकता हैं ? जाटों ने अब सच्चे भगवान और सच्चे गुरु को पहचान लिया हैं !

हमारा जवाब यह हैं : हमारा किसी से झगड़ा नहीं हैं ; हम सब धर्मो का आदर करते हैं , किसी के धार्मिक मामलो मे दखल नहीं देते ; हम धार्मिक कट्टरपंथियों से दूर रहना चाहते हैं ; हम आपसी सूझ-बुझ मे विश्वास रखते हैं जिस के कारण हम समाज को लाभकारी सेवाएं देने कि स्थिति मे हैं | शुभ कार्यों के लिए हमारी सेवाए सदा उपलब्ध रहती हैं | हमारी ओर से कोई भी जाट अपनी सोच और अपनी आस्था के अनुसार किसी भी साधारण अथवा सांप्रदायिक-राजनीतिक पार्टी मे शामिल होने और अपने सहयोग -सहायता से उसे मजबूत करने मे स्वतंत्र हैं | हम शुद्ध राजनीति - क्षेत्र मे भी अलग-अलग जगहों पर खड़े हैं | इस पृथकता के कारण मैं पहले बता ही चुका हू , हमारा संबंध केवल अर्थ-प्रधान राजनीति से हैं -अर्थात सांप्रदायिक आधार पर अधिकारों को निर्धारन हों जाने के बाद हम न्यायोचित एवं वैधानिक तरीके से उन अधिकारो कि सीमा मे रह कर उन का उचित हिस्सा हासिल करने कि कोशिश कर रहे हैं | हम सभी समुदायों के साथ पूर्ण सदभाव से रहना चाहते हैं - हम गरिमापूर्ण ढंग से मिल-जुल कर रहना चाहते हैं ; विशेष रूप से किसान जातियों के साथ प्रेम , आवश्यक एकता एवं सहयोग के साथ | हमारा समुदाय पिछड़ा हुआ हैं | हम देश के कमाऊ पूत हैं | दूसरी पिछड़ी जातियों के साथ हमारी हमदर्दी हैं | हम अपनी बिरादरी के आर्थिक एवं शैक्षिक स्तर को सुधारना चाहते हैं , और हम यह भी चाहते हैं कि दूसरी जातियों को भी अपने पिछड़ेपन से मुक्ति पा लेनी चाहिए ! इस उद्देश्य को लेकर हमारे बीच कोई विवाद नहीं हैं | हम सभी निहित स्वार्थो के साथ लड़ेंगे | आपसी सूझ-बुझ के साथ हमे एक दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए | देश तब ही सम्पन्न बनेगा जब हम पिछड़ेपन से मुक्ति पा लेंगे | पूरा समाज खुशहाल होगा | हम स्वयं को संगठित कर के जाट बिरादरी कि विशेषताओ को सँजोकर रखना चाहते हैं और अपनी सभी सामाजिक कुरीतियों को दूर करना चाहते हैं | ' जाट्स एंड संसार कबील गालदा ' -यह हमारी कौम कि कमजोरी हैं | हमारे विरोधी सब अवसरों पर इस का लाभ उठाते हैं | हमे इस कमजोरी को दूर करना हैं | हमारा 90 प्रतिशत कार्यकर्म आर्थिक ,शैक्षिक और सामाजिक सुधारों और उत्थान से संबंधित हैं | इस के बावजूद यदि कोई हमारे खून का प्यासा बनेगा तो हम जैसे को तैसा कि भावना से प्रत्याक्रमण करेंगे -मुंह तोड़ जवाब देंगे ! हम धर्म के क्षेत्र और इसकी सीमाओं को अच्छी तरह समझते हैं , और इन सीमाओं के भीतर हम धर्म को पूरा सम्मान देते रहेंगे , लेकिन हम किसी भी धर्म कि गलत व्याख्या और इसका दुरुपयोग कर के हम को मूर्ख बनाने कि इजाजत नहीं देंगे | सांसारिक मामलों मे जन्म और खून के रिश्तों को हम मजबूत , ठोस एवं पवित्र संबंध और बंधन मानते हैं | हम इस निम्न शेर मे व्यक्त शास्वत सत्य मे विश्वास करते हैं :

" हमने ये माना मजहब जान हैं इंसान कि |
कुछ इसके दम से कायम शान हैं इंसान कि
रंग-ए-क़ौमियत मगर इससे बदल सकता नहीं |
खून आबाए -रग तन से निकल सकता नहीं | "