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Monday, July 28, 2014

haryana me vikash ya vinash???


माननीय

भूपेंदर सिंह हुड्डा  जी

मै आपका एक पक्का समर्थक हूँ | हालाँकि मै कांग्रेस का कट्टर विरोधी हूं पर आपके प्रति मेरी विशेष सहानुभूति है | मै उत्तर प्रदेश के बाघपत जिले का एक साधारण नौजवन हूं, इस हिसाब मुझे हरयाणा के बारे में कुछ बोलने का हक तो नहीं बनता पर एक जाट होने के कारण मेरी कुछ चिंताए है जिसका बारे में आप और आपके समर्थको को सोचने की जरुरत है | कुछ लोग आज कल आपकी तुलना चौधरी छोटूराम , चौधरी चरण सिंह जैसे नेताओ से कर रहे है पर मुझे लगता है कि वे बिलकुल गलत है | आपने जाट समाज को आरक्षण दिलवाया , इस एहसान को पूरा जाट समाज कभी नहीं भूलेगा | पर आरक्षण के एहसान के तले आप जाट समाज का नुकसान करे ये भी नहीं हो सकता | 

     मै आपकी विचारधारा के बिलकुल खिलाफ हू| जिस पूंजीवाद के खिलाफ हमारे जाट समाज ने कुबनिया दी उसी पूंजीवाद को आप आगे बढ़ा रहे है| आपके विकास का modal बिलकुल गुजरात जैसा ही है| यानी विनाश का modal| मेरे समझ में नहीं आता की उद्योगपतियो को जमीन बेचकर आप कौन सा विकास करना चाहते है??

अगर आपने जाट जाति के इतिहास को पढ़ा हो तो पता चलेगा की जाट हमेशा खेती करते आये है|| भारत से लेकर यूरोप तक जाटों के पास दुनिया की बेहतरीन जमीन है | जाटों ने तो राजस्थान के बंजर में भी खेत बना दिए | ये जमीन हमरे पूर्वजो की दें है जिसके पीछे हजारो सालों का संघर्ष है, बलिदान है |आज हमें जमीन एक मामूली सी चीज लगती है पर अगर आप जाट देवताओ के बलिदान को देखेगे तो पता चलेगा की ये कोई मामूली चीज नहीं है| इसकी कीमत इतनी है की एक साधारण आदमी इसकी कीमत नहीं दे सकता| आप कहते है की जाट जमीन बेचकर अन्य काम कर सकते है, हा जरूर कर सकते है पर अपनी जमीन पर बिहारियों को बसाकर नहीं| अगर जाट अपनी जमीन दुसरे जाट को बेचे तो मुझे कोई परेशानी नहीं है पर अगर गैर जाट हमरे पूर्वजो की जमीन पर कब्ज़ा कर ले तो मुझे बड़ा दुःख होता है |

     आप पूंजीपतियो को जमीन बेचकर, पुरे हरयाणा में कंक्रीट के जंगल तयार कर रहे हो , जहाँ बहार के लोग आकर बस रहे है और हमारी संस्कृति को नष्ट कर रहे है , अगर ऐसा ही चलता रहा तो जाट ही अपनी जमीन पर अल्पसंख्यक हो जायेंगे | ये मात्र मेरी शंका ही नहीं है बल्कि हम ऐसा जाटलैंड दिल्ली में देख चुके है| जाटों की दिल्ली बिहारियों और गढ़वालियो की दिल्ली बन चुकी है| जाट अपना रानीतिक वजूद खो चुके है| जाटों के घर अब बिहारिओ के ठिये बन गए है, मुझे बिहारिओ से कोई परेशानी नहीं, बस दुःख है तो अपनी संस्कृति के नष्ट होने का, बलिदान की भूमि पर ऐरो गेरो के राज होने का | ऐसा ही कुछ आप गुडगाँव , फरीदाबाद में देख सकते है|और अगली डेस्टिनेशन सोनीपत, पानीपत, बहादुरगढ़ आदि होगे|

       कहते है की घणे आगे की नि सोचनी चाहिए पर मै आगे की पहले सोच लेता हु| दुनिया में किसी के पास कोयला है, किसी के पास पेट्रोलियम है, किसी के पास सोना है , तो किसी के पास और कुछ| और ये सब जयादा दिन नहीं चलेगा, जल्द ही ख़त्म हो जाएगा , इस से कमाए पैसे भी जरूर ख़त्म होगे, और फिर सब वही होगे जहा से चले थे यानी सब कंगाल| पर जाटों के पास एसी चीज है जो हमेशा सोना उगलेगी, जो कभी ख़त्म नहीं होगी  , यानी जमीन!!!! पर ऐसा तभी संभव होगा जब हम आगे की सोचे, अपनी कौम में एक अटूट एकता पैदा कर दे, पूंजीवाद को ख़त्म कर दे |

     सर छोटूराम जी , चौधरी चरण सिनघ जी ने कहा था की कम से कम एक जाट को हर परिवार से शहर में भेजना चाहिए , ये एक दूरगामी सोच थी| गाँव की ज्यादातर समस्याओ का हल था इस सोच में | अगर परिवार से एक दो जाट शहर के संसाधनों का इस्तमाल करके अपने गांवों को आगे बढ़ने का काम करेगा तो ज्यादातर समस्या ख़त्म हो जायेगी | अगर कोई जाट जमीन बेचे भी तो केवल जाटों को ही दे |न की इन पपूंजीपतियो को जो जमीन के साथ साथ संस्कृति को भी नष्ट कर दे|  कुछ जाट सोच रहे है की उनका गाँव भी एनसीआर में हो, हर जगह फलैट बन जाए, हम भी दिल्ली वालो की तरह माकान के किराये पर मौज करे| कुछ कहते है की केवल विकास गुडगाँव , सोनीपत, रोहतक में हो गया म्हारे यहाँ कुछ नि हुआ| उनके कुछ का मतलब है की जमीन की बिक्री|  उनको दूर के ढोल सुहाने लग रहे है|  कुछ कहते है की यहाँ की जमीन बेचकर और जगह ले लेगे, पर इस बात की क्या गारंटी है की वहा की जमीन भी आप नहीं बेचोड़े??? यानि बेच बेच कर कितनी पीढियों का गुजरो करोगे, इस बिरादरी  को क्या देकर जाओगे??

      मेर सोच पूंजीवाद विरोधी है, शोश्लिस्ट विचारधारा को मै मानता हु, थोडा साम्यवादी भी हु पर ऐसा कहकर आप मुझे गलत सिद्ध नहीं कर सकते और न ही मेरी शंकाओ को नकार सकते |

     मेरे पास इसका समाधान भी है, पर ये तभी लागु होगा जब हम अपनी खप व्यवस्था को सर्वोचता के साथ स्थापित करेगे, खप को परिवार की जजागीर  न बनकर पुरे जाट समाज की भागीदारी के साथ इसको मजबूत करेगे |हमें अपने स्तर पर भूमि सुधर आन्दोलन चलाना पड़ेगा\ नौकरी करने वाले जाट, विदेशो में रहने वाले जाट ,, को अपनी जमीन खापो के माध्य\म से जरूरतमंद जाट को दान करनी चाहिए ताकि खेती करने वाले जाट को जमीन की कमी न पड़े, वो भी आपके साथ आगे बढ़ सके| फिर देखना सारे जाट पूरी दुनिया को मुट्ठी में कर लेगे|खेती करने वाले किसान के बालक भी बड़े शहरो में पढेगे, वे भी विदेश जायेगे, एक दो जो पढ़ नि पायेगा वो भी खेती करके मौज करेगा| अगर जाट किसान खुश होगा तो निश्चित  तौर पर जाटों पर निर्भर जातियों को भी आगे बढ़ने का मौका मिलेगा |जिस दिन हर जाट मेरी तरह से सोचेगा टो मई गारंटी लेता हु की कोई जाट दुखी नहीं होगा| आरक्षण का फायदा भी तभी होगा|

       इसलिए हुड्डा जी कुछ सोचिये समाज के बारे में भी, अगर सोच नहीं सकते तो हमारी जमीनों को टो मत बेचो| इतनी भी क्या रानीतिक मबोर है जो वद्र को जमीन सौंप रहे हो, आरक्षण का बदला टो जाट पहले ही उतार चुके है, बोहत जमीन दे चुके वद्र , अम्बानी को| सब आपकी तरह अमीर नहीं है, जरा आँख खोलकर देखो, बोहत विनाश कर चुके है आप| क्रांति की शुरआत घर से होती है, तो मैंने ये लेख लिख दिया| भगत सिंह जी ने कहा था की विचार क्रांति की धर को तेज़ कर देते है, मैंने अपने विचार रख दिए , आगे मर्जी आपकी है |

धन्यवाद

 चौधरी अभिषेक लाकड़ा
 
नोट - पोस्ट राजनितिक उद्देश्य से बिलकुल नहीं लिखी गयी है, अतः फालतू में समय बर्बाद न करे| सुझाव के लिए abhichaudhary06@gmail.com par likhe.

6 comments:

Rahul Saxena said...
This comment has been removed by the author.
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