वर्ण व्यवस्था में जाति व्यवस्था बिलकुल ख़त्म हो जाती है। यानि या तो जाति को मानो या फिर वर्ण को! दोनों की बात करना दोहरी मानसिकता है। कुछ जाट हर बात में वर्ण को ले आते है। खासकर आर्य समाजिस्ट जाट। खैर आर्य समाज में जाति व्यवस्था नहीं है, ऐसे में हम आर्य समाजी और जाट शब्द दोनों को एक साथ इस्तेमाल नहीं कर सकते। क्योंकि ये दोनों विरोधाभासी शब्द है, जो आर्य समाजी है वो जाट नहीं, जो जाट है वो आर्य समाजी नहीं। आर्य समाजी या तो क्षत्रिय हो सकता है, या वैश्य , या ब्राह्मण या फिर शूद्र। जो जाट खेती करता है वो वैश्य, जो अपने पशुओ के गोबर को हाथ लगाता है वो शूद्र , जो अध्यापक है वो ब्राह्मण , और जो सेना में है वो क्षत्रिय। ये वर्ण जन्मजात नहीं है, यानि वर्ण बदलते रहते है। आर्य समाजिओं के हिसाब से शादी वर्ण में ही करनी चाहिए। यानि जाति व्यवस्था को भूल अपने वर्ण में कर सकते है।
इसमें एक बात और महत्वपूर्ण है, ब्राह्मण (जो जाट ब्राह्मण है वे ध्यान दे ) का पुत्र 8 साल उम्र में स्कूल जा सकता है, क्षत्रिय का 12 साल , वैश्य का 14 साल और शूद्र का 16 साल यानि मेरिट का पूरा ख्याल रखा गया है। तो हे भद्रजनों आप मुझे ये बताओ कि आप आर्य समाजी है या फिर जाट ?? अगर आर्य समाजी है तो कर्म के आधार पर अपना अपना वर्ण बताने का कष्ट करे।
*यजोपवीत धारण करने और विद्यालय जाने की सटीक उम्र अपने आप देख ले।
इसमें एक बात और महत्वपूर्ण है, ब्राह्मण (जो जाट ब्राह्मण है वे ध्यान दे ) का पुत्र 8 साल उम्र में स्कूल जा सकता है, क्षत्रिय का 12 साल , वैश्य का 14 साल और शूद्र का 16 साल यानि मेरिट का पूरा ख्याल रखा गया है। तो हे भद्रजनों आप मुझे ये बताओ कि आप आर्य समाजी है या फिर जाट ?? अगर आर्य समाजी है तो कर्म के आधार पर अपना अपना वर्ण बताने का कष्ट करे।
*यजोपवीत धारण करने और विद्यालय जाने की सटीक उम्र अपने आप देख ले।
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