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Saturday, August 15, 2015

Greater Haryana (Subah-e-Delhi)

1860 से पहले का सूबा-ए-देहली/दिल्ली सूबा/Delhi State (विशाल हरयाणा), विशाल हरयाणा का ये क्षेत्र 1947 की हिसार-रोहतक-अम्बाला डिवीज़न, वर्तमान दिल्ली और दोआब की मेरठ डिवीज़न को मिलकर बनता था। मेरठ डिवीज़न बुलंदशहर से लेकर देहरादून तक थी, जिसमे आज के बाघपत, शामली, हापुड़ , मुजफ्फरनगर , सहारनपुर, हरिद्वार, देहरादून,बिजनौर, गाज़ियाबाद , बुलंदशहर आदि जिले शामिल थे। अकबर से पहले १२ सूबे थे जो बाद में २१ हो गए। सर्व खाप पंचायत मुख्यालय शोरम के अनुसार दिल्ली के चारो और लगभग 100 कोस तक हरयाणा था। 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने इस क्षेत्र के लोगो को दंड के तौर पर विभाजित कर दिया। दोआब के इलाके को अवध और अलाहबाद के साथ मिला कर संयुक्त प्रान्त बनाया। संयुक्त प्रान्त में चार सूबे थे जिसमे आगरा , इलाहबाद , अवध और हरयाणा के दोआब का क्षेत्र।
पश्चिम यानि वर्तमान हरयाणा को लाहौर सूबे में मिलाकर पंजाब बनाया गया जिसमे हरयाणा का ज्यादातर हिस्सा रियासतों में बाँट दिया गया। पर हरयाणवी लोग इस विभाजन को मात्र 150 साल में भूल गए। आज आपस में ही लड़ते रहते है। हजारों साल के हरयाणा को भूल कर इंदिरा गांधी के बनाये 50 साल पुराने हरयाणा को असली हरयाणा मान बैठे।


संस्कृति/कल्चर के इतनी ही बात हो रही है तो कुछ बात मैं भी कर दू, अपनी संस्कृति हरयाणवी है, पर सरकारी लकीरों ने इसको यूपी वाली बना दिया, लोग हरयाणवी होकर भी खुद को हरयाणवी नहीं बोल सकते। वैसे ये अन्याय अंग्रेजों ने 1857 की क्रांति के दंड के तौर पर इस क्षेत्र के लोगो के साथ किया था, पर ये आज तक जारी है, नेहरू ने तो राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट तक नहीं मानी थी, जिसके हिसाब से मेरठ डिवीज़न , दिल्ली और रोहतक-अम्बाला डिवीज़न के क्षेत्र को हरयाणा चिन्हित किया गया था। 


बाहर के लोग हमें हरयाणवी ही बोलते है, फिर दबी जुबान में खुद बताना पड़ता है कि यूपी से है। देश में ऐसे सांस्कृतिक बटवारे का ये अकेला उदहारण है। जिसको राजनेताओ ने अपने फायदे के हिसाब से इस्तेमाल किया, हिसाब से लकीरें खींचते गए।
यूपी के साथ जुड़ने का दुःख नहीं बल्कि हरियाणा से टूटने का दुःख जरूर है। उम्मीद तो है कि कभी न कभी तो इस क्षेत्र को अपनी सांस्कृतिक पहचान जरूर मिलेगी। अलग राज्य की मांग करने वालो को भी इसका नाम पश्चिम प्रदेश के बजाय पूर्वी हरयाणा रखना चाहिए।

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Maps are taken from the book The Atlas of Mughal Empire by Prof.Irfan Habib

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