अपनी हिम्मत से हमने खुद छुआ है आसमां को।
ऐ ज़माने हम तेरी इमदाद पर जिन्दा नहीं॥
पश्चिम उत्तर प्रदेश के बाघपत जिले के लिए ये पंक्ति बिलकुल सही बैठती है। सरकारी अनदेखी और बिना सुविधाओं के इस जिले ने जो मुकाम हासिल किये है उसके लिए ये शब्द भी कम ही है। आज मै आपको अपने जिले का परिचय करवाता हूं ।
बाघपत जिला पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ऊपरी दोआब के क्षेत्र में पड़ता है। इसकी सीमा पूर्व में मेरठ , उत्तर में शामली , दक्षिण में गाज़ियाबाद और पश्चिम में पानीपत , सोनीपत और दिल्ली से मिलती है। इसके पश्चिमी छोर पर यमुना तो पूर्वी छोर पर हिंडन है। इस जिले में बड़ौत , बाघपत , खेकड़ा तीन तहसील है।
1997 में बने इस जिले के क्षेत्र का इतिहास काफी पुराना है। हड़प्पा सभ्यता के अवशेष इस क्षेत्र की प्राचीनता की निशानी है। बाघपत शब्द संस्कृत के शब्द "व्याघ्रप्रस्थ " का हिंदी रूप है। जिसका मतलब है बाघों की धरती( Land of Tigers). पौराणिक कथाओं के अनुसार कृष्ण जी ने कौरवों से पांच क्षेत्र मांगे थे , जिनमे पाण्डुप्रस्था(पानीपत), स्वर्णप्रस्थ (सोनीपत ), मरुप्रस्थ (मारीपत ), तिलप्रस्थ( तिलपत) और व्याघ्रप्रस्थ(बाघपत) नाम थे। महाभारत में वर्णित लाक्षागृह भी यही स्थित है। बाल्मीकि की तपोभूमि भी बालैनी गांव में स्थित है, जहां लव कुश का बचपन बीता।
ये धरती गवाह रही है जाट वीरों के पराक्रम की , ये धरती गवाह रही है खाप परंपरा की , ये धरती गवाह रही है क्रांति की। मुग़ल काल से लेकर अंग्रेजों तक यहाँ खाप का राज रहा। जब भी यहाँ किसी ने कब्ज़ा करने की कोशिश की तो मुहतोड़ जवाब दिया गया , चाहे वो तैमूर रहा हो या फिर अंग्रेज। 1857 में देश खाप के बाबा शाहमल सिंह तोमर ने इस क्षेत्र को अंग्रेजों से आज़ाद कराकर , स्वतंत्र देश घोषित किया और बड़ौत को राजधानी बनाया , जो राज लघभग 2 साल तक स्वतंत्र देश रहा। क्रांति के दमन में हुई ज्यादतियों का बदला लेने वाली इस क्षेत्र की खाप वीरांगनाओ शिवदेई , जयदेई को कौन भूल सकता है , जिन्होंने अंग्रेज अफसरों को लखनऊ जाकर मौत के घाट उतरा था। उस मास्टर चन्द्रभान को कौन भूल सकता है जिसने शेखावाटी में अपने जाट भाइयों को शिक्षित किया और क्रांति का बिगुल बजाया।
दरअसल 1857 तक ये क्षेत्र "विशाल हरयाणा " यानि " सूबा - ए -दिल्ली " का हिस्सा था, जिसको क्रांति के दंड़स्वरूप हरियाणा से तोड़कर अवध आगरा सूबे में मिला दिया। यहाँ देशवाली भाषा बोली जाती है, हरयाणवी का ही एक रूप है। यही कारण है की बहार के लोग यहाँ के लोगो को हरयाणवी ही मानते है। छपरौली/बड़ौत वर्तमान हरयाणा के काफी नजदीक है, बस एक नदी का फर्क है बीच में।
यहाँ हमेशा खापों का राज रहा। यहाँ की प्रमुख खाप है , देश खाप, चौगामा खाप , छप्परौली चौबीसी और लाकड़ा चौहान खाप ।
बाघपत का राजनीती में हमेशा ही सबसे ऊपर नाम रहा है। देश में सबसे ज्यादा जाट आबादी वाले छपरौली क्षेत्र से अपनी राजनीती की शुरुआत करने वाले चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने और बाद में देश के प्रधानमंत्री बने। वे देश के अकेले जाट है जो देश के प्रधानमंत्री बने। चौधरी अजीत सिंह केंद्र में लम्बे समय तक मंत्री रहे। चौधरी सोमपाल शास्त्री भी केंद्रीय कृषि मंत्री रहे। यानि ऐसी कोई सरकार नहीं रही जिसमे बाघपत से मंत्री ना बना हो। ऐसा नहीं है कि यहाँ के जाट केवल देश की राजनीती तक ही सीमित रहे हो, यहाँ के सत्यवीर चौधरी अमेरिका में लम्बे समय तक सीनेटर रहे। डॉक्टर हरी सिंह अमेरिका में अमेरिकन साइंटिफिक सोसायटी के अधय्क्ष रहे है। वर्तमान सांसद डॉक्टर सत्यपाल सिंह भी मुंबई पुलिस के कमिश्नर रहे है। UGC के चेयरमैन चौधरी वेद प्रकाश तोमर भी यही के बावली गांव से है। नमक हलाल , हेरा फेरी , और शराबी जैसी फिल्मों के निर्माता सतेंदर पाल चौधरी भी बाघपत से ही थे।
अगर बात खेल की की जाये तो यहाँ के जाटों ने दुनिया में अपने झंडे गाड़े है। बिना किसी सुविधा के जो काम इस जिले के जाटों ने किया शायद ही ऐसा कही और हुआ हो। 6 अर्जुन अवार्ड वाला ये छोटा सा जिला जरूर अपने आप पर गर्व कर सकता है। तीन खेल (शूटिंग , कबड्डी , और कुश्ती ) में ये जिला नम्बर एक स्थान पर है। 4 अर्जुन अवार्ड केवल कुश्ती में ही है। जिसमे शौकेंदेर , राजीव तोमर , सुभाष , और सुनील राणा ने कुश्ती में अर्जुन अवार्ड हासिल किये। शूटिंग में विवेक सिंह सीमा तोमर ने अर्जुन अवार्ड हासिल किया। राजीव तोमर को "खेल रत्न " से भी सम्मानित किया जा चुका है। कबड्डी में भी एक बार बाघपत का दबदबा रहा, सुभाष चौधरी नेशनल टीम के कप्तान रहे , वही स्क्वाड्रन लीडर एस पी सिंह नेशनल कबड्डी टीम के कोच रहे। कबड्डी लीग में बेस्ट रेडर रहे राहुल चौधरी भी मूलत बाघपत जिले के ही बावली गांव से बिजनौर गए है। इंटरनेशनल शूटिंग कोच डॉक्टर राजपाल सिंह भी बाघपत जिले से है, जिनके मार्गदर्शन में देश के खिलाडी शूटिंग में मेडल ला रहे है। शूटिंग का शौक इस कदर है कि दुनिया की सबसे ज्यादा उम्र की शूटर दादी चन्द्रो और दादी प्रकाशो को दुनिया जानती है। हालाँकि यहाँ के खिलाडियों को टीस रही है , अगर हरयाणा जैसी सुविधाएँ इस जिले को मिले मिले तो यहाँ के खिलाडी और बेहतर कर सकते है।
बाघपत के बारे में जितना लिखो उतना कम है। देश का सबसे बड़ा जाट कॉलिज बड़ौत की शान में चार चाँद लगा देता है। साढ़े चार लाख हिन्दू जाट और लगभग दो लाख मुले जाट आबादी के साथ ये देश का सबसे ज्यादा जाट वोट वाला जिला है। यहाँ दोआब के बाकि जिलो से कम " प्रति व्यक्ति भूमि " होने के बावजूद सबसे ज्यादा उत्पादकता वाला जिला है। प्रतिव्यक्ति आय की बात करे तो गुडगाँव, फरीदाबाद , नॉएडा , ग़ज़िआबाद के बाद पांचवे नंबर पर है। सरकारी कर्ज की बात करे तो ये उत्तर भारत का सबसे कम कर्ज वाला जिला है। आज भी लगभग 2100 करोड़ रूपए मिल मालिकों पर बकाया है। एशिया का सबसे बड़ा एनिमल हेल्थ रिसर्च इंस्टिट्यूट भी बाघपत में स्थित है।
क्राइम ने जरूर इस जिले की शान में बट्टा लगाया है, 2012 में इस जिले ने मुजफ्फरनगर को पीछे छोड़ दिया था। पर समाज और खापों ने दुबारा यहाँ हालत संभाले और युवाओं को दुबारा खेल की तरफ मोड़ा। सामाजिक सद्भाव की बात करे तो यहाँ आज तक कोई दंगा नहीं हुआ। यहाँ के लोग लड़ाकू जरूर है पर दंगेबाज बिलकुल भी नहीं है।
बाकी आप भी कुछ बताओ जाटलैंड बाघपत के बारे में..........
Written By- Abhishek Lakra
ऐ ज़माने हम तेरी इमदाद पर जिन्दा नहीं॥
पश्चिम उत्तर प्रदेश के बाघपत जिले के लिए ये पंक्ति बिलकुल सही बैठती है। सरकारी अनदेखी और बिना सुविधाओं के इस जिले ने जो मुकाम हासिल किये है उसके लिए ये शब्द भी कम ही है। आज मै आपको अपने जिले का परिचय करवाता हूं ।
बाघपत जिला पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ऊपरी दोआब के क्षेत्र में पड़ता है। इसकी सीमा पूर्व में मेरठ , उत्तर में शामली , दक्षिण में गाज़ियाबाद और पश्चिम में पानीपत , सोनीपत और दिल्ली से मिलती है। इसके पश्चिमी छोर पर यमुना तो पूर्वी छोर पर हिंडन है। इस जिले में बड़ौत , बाघपत , खेकड़ा तीन तहसील है।
1997 में बने इस जिले के क्षेत्र का इतिहास काफी पुराना है। हड़प्पा सभ्यता के अवशेष इस क्षेत्र की प्राचीनता की निशानी है। बाघपत शब्द संस्कृत के शब्द "व्याघ्रप्रस्थ " का हिंदी रूप है। जिसका मतलब है बाघों की धरती( Land of Tigers). पौराणिक कथाओं के अनुसार कृष्ण जी ने कौरवों से पांच क्षेत्र मांगे थे , जिनमे पाण्डुप्रस्था(पानीपत), स्वर्णप्रस्थ (सोनीपत ), मरुप्रस्थ (मारीपत ), तिलप्रस्थ( तिलपत) और व्याघ्रप्रस्थ(बाघपत) नाम थे। महाभारत में वर्णित लाक्षागृह भी यही स्थित है। बाल्मीकि की तपोभूमि भी बालैनी गांव में स्थित है, जहां लव कुश का बचपन बीता।
ये धरती गवाह रही है जाट वीरों के पराक्रम की , ये धरती गवाह रही है खाप परंपरा की , ये धरती गवाह रही है क्रांति की। मुग़ल काल से लेकर अंग्रेजों तक यहाँ खाप का राज रहा। जब भी यहाँ किसी ने कब्ज़ा करने की कोशिश की तो मुहतोड़ जवाब दिया गया , चाहे वो तैमूर रहा हो या फिर अंग्रेज। 1857 में देश खाप के बाबा शाहमल सिंह तोमर ने इस क्षेत्र को अंग्रेजों से आज़ाद कराकर , स्वतंत्र देश घोषित किया और बड़ौत को राजधानी बनाया , जो राज लघभग 2 साल तक स्वतंत्र देश रहा। क्रांति के दमन में हुई ज्यादतियों का बदला लेने वाली इस क्षेत्र की खाप वीरांगनाओ शिवदेई , जयदेई को कौन भूल सकता है , जिन्होंने अंग्रेज अफसरों को लखनऊ जाकर मौत के घाट उतरा था। उस मास्टर चन्द्रभान को कौन भूल सकता है जिसने शेखावाटी में अपने जाट भाइयों को शिक्षित किया और क्रांति का बिगुल बजाया।
दरअसल 1857 तक ये क्षेत्र "विशाल हरयाणा " यानि " सूबा - ए -दिल्ली " का हिस्सा था, जिसको क्रांति के दंड़स्वरूप हरियाणा से तोड़कर अवध आगरा सूबे में मिला दिया। यहाँ देशवाली भाषा बोली जाती है, हरयाणवी का ही एक रूप है। यही कारण है की बहार के लोग यहाँ के लोगो को हरयाणवी ही मानते है। छपरौली/बड़ौत वर्तमान हरयाणा के काफी नजदीक है, बस एक नदी का फर्क है बीच में।
यहाँ हमेशा खापों का राज रहा। यहाँ की प्रमुख खाप है , देश खाप, चौगामा खाप , छप्परौली चौबीसी और लाकड़ा चौहान खाप ।
बाघपत का राजनीती में हमेशा ही सबसे ऊपर नाम रहा है। देश में सबसे ज्यादा जाट आबादी वाले छपरौली क्षेत्र से अपनी राजनीती की शुरुआत करने वाले चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने और बाद में देश के प्रधानमंत्री बने। वे देश के अकेले जाट है जो देश के प्रधानमंत्री बने। चौधरी अजीत सिंह केंद्र में लम्बे समय तक मंत्री रहे। चौधरी सोमपाल शास्त्री भी केंद्रीय कृषि मंत्री रहे। यानि ऐसी कोई सरकार नहीं रही जिसमे बाघपत से मंत्री ना बना हो। ऐसा नहीं है कि यहाँ के जाट केवल देश की राजनीती तक ही सीमित रहे हो, यहाँ के सत्यवीर चौधरी अमेरिका में लम्बे समय तक सीनेटर रहे। डॉक्टर हरी सिंह अमेरिका में अमेरिकन साइंटिफिक सोसायटी के अधय्क्ष रहे है। वर्तमान सांसद डॉक्टर सत्यपाल सिंह भी मुंबई पुलिस के कमिश्नर रहे है। UGC के चेयरमैन चौधरी वेद प्रकाश तोमर भी यही के बावली गांव से है। नमक हलाल , हेरा फेरी , और शराबी जैसी फिल्मों के निर्माता सतेंदर पाल चौधरी भी बाघपत से ही थे।
अगर बात खेल की की जाये तो यहाँ के जाटों ने दुनिया में अपने झंडे गाड़े है। बिना किसी सुविधा के जो काम इस जिले के जाटों ने किया शायद ही ऐसा कही और हुआ हो। 6 अर्जुन अवार्ड वाला ये छोटा सा जिला जरूर अपने आप पर गर्व कर सकता है। तीन खेल (शूटिंग , कबड्डी , और कुश्ती ) में ये जिला नम्बर एक स्थान पर है। 4 अर्जुन अवार्ड केवल कुश्ती में ही है। जिसमे शौकेंदेर , राजीव तोमर , सुभाष , और सुनील राणा ने कुश्ती में अर्जुन अवार्ड हासिल किये। शूटिंग में विवेक सिंह सीमा तोमर ने अर्जुन अवार्ड हासिल किया। राजीव तोमर को "खेल रत्न " से भी सम्मानित किया जा चुका है। कबड्डी में भी एक बार बाघपत का दबदबा रहा, सुभाष चौधरी नेशनल टीम के कप्तान रहे , वही स्क्वाड्रन लीडर एस पी सिंह नेशनल कबड्डी टीम के कोच रहे। कबड्डी लीग में बेस्ट रेडर रहे राहुल चौधरी भी मूलत बाघपत जिले के ही बावली गांव से बिजनौर गए है। इंटरनेशनल शूटिंग कोच डॉक्टर राजपाल सिंह भी बाघपत जिले से है, जिनके मार्गदर्शन में देश के खिलाडी शूटिंग में मेडल ला रहे है। शूटिंग का शौक इस कदर है कि दुनिया की सबसे ज्यादा उम्र की शूटर दादी चन्द्रो और दादी प्रकाशो को दुनिया जानती है। हालाँकि यहाँ के खिलाडियों को टीस रही है , अगर हरयाणा जैसी सुविधाएँ इस जिले को मिले मिले तो यहाँ के खिलाडी और बेहतर कर सकते है।
बाघपत के बारे में जितना लिखो उतना कम है। देश का सबसे बड़ा जाट कॉलिज बड़ौत की शान में चार चाँद लगा देता है। साढ़े चार लाख हिन्दू जाट और लगभग दो लाख मुले जाट आबादी के साथ ये देश का सबसे ज्यादा जाट वोट वाला जिला है। यहाँ दोआब के बाकि जिलो से कम " प्रति व्यक्ति भूमि " होने के बावजूद सबसे ज्यादा उत्पादकता वाला जिला है। प्रतिव्यक्ति आय की बात करे तो गुडगाँव, फरीदाबाद , नॉएडा , ग़ज़िआबाद के बाद पांचवे नंबर पर है। सरकारी कर्ज की बात करे तो ये उत्तर भारत का सबसे कम कर्ज वाला जिला है। आज भी लगभग 2100 करोड़ रूपए मिल मालिकों पर बकाया है। एशिया का सबसे बड़ा एनिमल हेल्थ रिसर्च इंस्टिट्यूट भी बाघपत में स्थित है।
क्राइम ने जरूर इस जिले की शान में बट्टा लगाया है, 2012 में इस जिले ने मुजफ्फरनगर को पीछे छोड़ दिया था। पर समाज और खापों ने दुबारा यहाँ हालत संभाले और युवाओं को दुबारा खेल की तरफ मोड़ा। सामाजिक सद्भाव की बात करे तो यहाँ आज तक कोई दंगा नहीं हुआ। यहाँ के लोग लड़ाकू जरूर है पर दंगेबाज बिलकुल भी नहीं है।
बाकी आप भी कुछ बताओ जाटलैंड बाघपत के बारे में..........
Written By- Abhishek Lakra
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