आजकल जाट भाइयोँ को भी कावड लाने का और शिवलिँग पूजने का शौक का लग गया है। लाखोँ करोडोँ रुपये कावड मेँ बर्बाद कर रहे है। शिविरोँ मे ऐसे नाचते है जैसे ये जाट के घर नहीँ किसी डूम के घर पैदा हुए हो। हद तो यहाँ तक है कि माताए बहने भी लिँग पूजा करती है, जो मुझे तो बेहद शर्मनाक लगता है। अगर उन्हे नहीँ पता कि ये शिव लिँग क्या है तो मै बताता हूँ।
शिव पुराण, रुद्र संहिता, अध्याय 11 मेँ लिखा है-
गिरिजा योनि रूपाँ च संस्थाप्य शुभं पुनः। तत्र लिँगं च तत्सस्थांप्य पुनश्चैवाभिमन्तरमेत्।।
अर्थ-
पार्वती के गुप्तांग की नकल की शुभ जलहरी बनाकर फिर उसमेँ लिँग को स्थापित करके उसकी पूजा करेँ।
अब तो मेरे जाट भाइयोँ को कोई शंका नहीँ रही होगी जो पंडोँ के चक्कर मे पडकर लिंग पूजते हैं। ये तो घोर अश्लिल कृत्य है और सभ्य आदमी के लिए तो बिल्कुल नहीँ है। मेरी तो आपसे एक ही प्रार्थना है कि अब तो "पंडा छोडो"।
शिव पुराण, रुद्र संहिता, अध्याय 11 मेँ लिखा है-
गिरिजा योनि रूपाँ च संस्थाप्य शुभं पुनः। तत्र लिँगं च तत्सस्थांप्य पुनश्चैवाभिमन्तरमेत्।।
अर्थ-
पार्वती के गुप्तांग की नकल की शुभ जलहरी बनाकर फिर उसमेँ लिँग को स्थापित करके उसकी पूजा करेँ।
अब तो मेरे जाट भाइयोँ को कोई शंका नहीँ रही होगी जो पंडोँ के चक्कर मे पडकर लिंग पूजते हैं। ये तो घोर अश्लिल कृत्य है और सभ्य आदमी के लिए तो बिल्कुल नहीँ है। मेरी तो आपसे एक ही प्रार्थना है कि अब तो "पंडा छोडो"।
चौ. अभिषेक लाकड़ा