लगभग सन् 2000 की बात है , मेरी उम्र लगभग 7 साल थी। मेरे गाँव लूम्ब (जिला बाघपत) मेँ चौधरी अजीत सिँह की रैली थी। मै अजीत सिँह को जानता भी नहीँ था। लगभग 15 बीघे के मैदान मे पैर रखने की भी जगह नहीँ थी। अन्ना हजारे की रैली से कही बड़ी। बच्चे और माताएँ बहने भी चौधरी सहाब की एक झलक देखने के लिए रैली मेँ आयी थी। गांव मेँ कोई नी था। मैँ अपनी दादी के साथ अजीत सिँह को देखने गया। चौधरी सहाब को पैसोँ से तौला गया। तब गन्ने का भाव 45-55 था, पर अजीत के प्रती लोगोँ का लगाव इतना था कि अजीत के लिए सब कुछ त्याग सकते थे।तब चौधरी सहाब के एक इशारे पर जनता कुछ भी कर सकती थी। हर घर पे लोकदल का झण्ड़ा होता था। जितना प्यार चौधरी अजीत सिँह को लोगोँ ने दिया उतना चौ. चरण सिँह को भी ना मिला होगा। पर चौधरी अजीत सिँह लोगोँ की अपेक्षाओँ पर खरे नहीँ उतरे। जिस कारण आज लोग उनसे इतने दूर हो गये। उनका बार बार पार्टियाँ बदलना जाटोँ को रास नहीँ आया। और आज घरोँ पर लोकदल के झण्ड़े की बात तो भूल ही जाये, रैली मेँ भी लोगोँ को बुला बुला कर ले जाना पड़ता है। जादू खत्म हो गया। अजीत सिँह को इसकी समीक्षा करनी चाहिए। कुछ तो गलती हुई है?
चौ. अभिषेक लाकड़ा