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Wednesday, June 18, 2014

चौधरी छोटुराम जी की सोच व संघर्ष

चौधरी छोटुराम जी की सोच व संघर्ष 
औरतों पर अत्याचार बंद करें
चौधरी छोटूराम ने औरतों पर अत्याचार बंद करवाने के लिए 'जेण्डर इक्विटी एक्ट-1942Ó बनाकर उन्हें पुरुषों के समान अधिकार दिलाए। पंचायती राज स्थापित कर औरतों को 50 प्रतिशत सीटों पर भागीदारी दी। विधानसभा में 20 प्रतिशत सीटें प्रथम बार 1943 के चुनाव में तथा पांच वर्ष बाद 50 प्रतिशत सीटें देने का प्रावधान किया। औरतों को शिक्षित करने के लिए नारी शिक्षा को अनिवार्य करने का प्रस्ताव पास कराया। परन्तु यह काम इसलिए अधूरे रह गए, क्योंकि चौधरी छोटूराम का देहान्त 1945 में ही हो गया। और विरला समाज सुधारक इस दुनिया से विदा हो गया।
मुलतान जिले (हाल पाकिस्तान) में दलितों को कृषि भूमि देना
दीनबंधू सर छोटूराम का दीनबन्धू नामकरण दलितों द्वारा किया गया, क्योंकि इन्होंने कहा था कि दलित शब्द समाप्त करना जरूरी है नहीं तो शोषित वर्ग समाज में बराबरी पर नहीं आ सकता। 13 अपे्रल 1938 को जब ये कृषि मंत्री थे तब भूमिहीन दलितों को खाली पड़ी सरकारी कृषि भूमि 4 लाख 54 हजार 625 एकड़ (किले) जो मुलतान जिले में थी भूमिहीन दलितों को रु. 3/- (तीन) प्रति एकड़ जो 12 वर्षों में बिना ब्याज, प्रतिवर्ष चार आने किश्तों पर चुकाने की शर्तों सहित अलॉट कर दलितों को भू-स्वामी बनाया। दलितों ने सर छोटूराम को दीनबन्धू का नाम देकर इन्हें हाथी पर चढ़ा कर ढोल-नगाड़ों से जुलूस निकालकर जलसा किया। ऐसे पड़ा था इनका नाम दीनबन्धू।
छुआछूत बुराई कानून
राज्य में 1 जुलाई 1940 को सर छोटूराम ने यह कानून बनाकर सख्ती से लागू कर दलित शब्द मिटाने का वचन निभाया। एक सरकुलर जारी किया गया, जिसके अनुसार सारे पब्लिक कुएं सारी जातियों के लिए खोल दिए गए। इससे दलितों को इंसानी हकूक कानूनी तौर पर मिल गए, जिससे वह सदियों से रिवाज और जाति-पाति के चक्करों से वंचित कर दिए गए थे। जमींदारा पार्टी का यह फैसला लागू होने पर मोठ गांव में स्वर्णों ने दलितों को कुओं पर चढऩे से रोकने पर खुद चौ. छोटूराम ने वहां जाकर समझाइश कर दलितों को कुएं पर चढ़ाकर पानी भरवाकर घड़े दलित महिलाओं के सिर पर चकवाकर उनका सम्मान बढ़ाया।
इसके अतिरिक्त सरकारी हुक्म जारी कर दिए कि कोई ऑफिसर किसी दलित या पिछड़ी जाति के आदमी से किसी प्रकार की 'बेगारÓ नहीं लेगा। सरकारी दौरे पर दलित से अपना सामान नहीं उठवाएगा। हिदायत दी कि बेगार लेना कानूनी जुर्म है। इन्सान की बेकदरी है।
मुस्लिम समाज से भाईचारा
सर छोटूराम ने नेशनल यूनियनिस्ट जमींदारा पार्टी वर्ष 1923 में बनाई, परन्तु सर फजली हुसैन जिन्होंने इंग्लैण्ड से वकालत की थी को इसका अध्यक्ष बनाया। जब जमींदारा पार्टी वर्ष 1935 में सत्ता में आई तब सर सिकन्दर हयात खां एक मुस्लिम को वजीरे आला (मुख्यमंत्री) बनाया। सर सिकन्दर हयात खां लन्दन स्कूल ऑफ इकनोमिक्स से पढ़े विद्वान थे जो उस समय रिजर्व बैंक - दिल्ली में इसके गवर्नर थे। सर सिकन्दर हयात खां के देहान्त के बाद इन्होंने उसके पुत्र सर खीजर हयात खां को वजीरे आला बनाया। सन् 1945 में चौधरी छोटूराम के देहान्त के बाद सर खीजर हयात खां को इतना सदमा लगा कि वह देश छोड़कर इंग्लैण्ड यह कहते हुए चला गया कि जब चाचा ही नहीं रहे तो अब शासन किसके सहारे करूंगा।
राजपुताना में कुम्हारों पर लगी 'चाक लागÓ को समाप्त कराया
दीनबन्धु सर छोटूराम ने राजपुताने के राजाओं तथा ठिकानेदारों द्वारा कुम्हारों के घड़े व मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचने पर 'चाक लागÓ लगा रखी थी जो रु. 5/- वार्षिक अदा करनी पड़ती थी। राजाओं का कहना था कि जिस मिट्टी से कुम्हार बर्तन व घड़े बनाकर बेचते हैं वह मिट्टी राजाओं की जमीन की है, इसलिए यह लाग देनी पड़ेगी। सर छोटूराम ने 5 जुलाई 1941 को बीकानेर में कुम्हारों को इक्ट्ठा कर महाराजा गंगासिंह से बातचीत कर इन्हें इस 'चाक लागÓ से मुक्ति दिलाई। कुम्हारों ने खुश होकर सर छोटूराम को एक सुन्दर 'सुराहीÓ जिसमें पानी ठण्डा रहता हंै भेंटकर सम्मान किया। सर छोटूराम ने मरते दम तक वह सुराही अपने पास रखी।
'कतरन लागÓ से नाइयों तथा नायकों को मुक्ति
नायक तथा बावरी जातियां भेड़-बकरियां पालती थी। भेड़-बकरियों के बाल तथा ऊन कतरने पर ठिकानों ने 'कतरन लागÓ लगा रखी थी। इसी प्रकार नाइयों द्वारा बाल काटने का धन्धा करने पर इस कतरन लाग का भुगतान करना पड़ता था। सर छोटूराम ने 26 जुलाई 1941 को मारवाड़ के गांव रतनकुडिय़ा तथा पहाड़सर में भेड़-बकरी पालकों को इक्ट्ठा कर 'कतरन लागÓ के विरूद्ध प्रदर्शन कर इस 'कतरन लागÓ से इन्हें मुक्ति दिलाई।
'बुनकर लागÓ का उन्मूलन कर बुनकरों को राहत
बुनकर जो अधिकतर जुलाहे मेघवाल समाज से होते थे जो डेवटी की रजाई का कपड़ा, खेस, चादर तथा मोटा कपड़ा रोजी रोटी कमाने के लिए बुनकर बेचते थे। सूत गृहणियां कातकर उन्हें देती थी और वे उस सूत से उनकी इच्छानुसार वस्तुएं बुनकर दे देते थे। शेखावाटी तथा मारवाड़ और विशेषतौर पर जयपुर, पाली तथा बालोतरा में यह काम जोरों पर था। ठिकानेदारों न इस काम पर 'बुनकर लागÓ रखा रखी थी। जिसका विरोध 4 वर्षों तक सन् 1937 से 1941 तक सर छोटूराम ने अपनी अगुवाई में करके समाप्त कराया। बालोतरा में 9 अगस्त 1941 को ठिकानेदारों ने जुलाहों के घरों को लाग नहीं देने पर आग लगा दी जिससे सारा कपड़ा जल गया। सर छोटूराम वहां गए और 8 दिन भूख हड़ताल की तब जाकर जोधपुर के राजा का सन्देश आया कि यह लाग समाप्त कर दी गई है। सर छोटूराम ने 28 मेघवाल परिवारों को नुकसान की भरपाई के लिए रु. 1500/- प्रत्येक परिवार को राजा से दिलवाने की मांग पर अड़ गए। तीन दिन बाद राजा ने प्रत्येक परिवार को रु. 1500/- देने की घोषणा की। ऐसे संघर्ष सर छोटूराम ने मंत्री पद पर रहते हुए किसानों और दलितों की भलाई के लिए किए जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता।
जागीरदारी प्रथा - लगान वसूली व बेगारों में निर्दयता
रियासती काल में ठिकानें जागीरदारों के अधीन थे। जागीरदार उनसे अनेक प्रकार की श्रमसाध्य और जानलेवा बेगारें लेते थे। ये जागीरदार बड़े ही निरंकुश और अत्यन्त मनमानी करने वाले माने जाते थे। जागीरदार की मर्जी ही कानून था। यदि किसान से लगान वसूली नहीं होती तो किसान को पकड़कर ठिकाने के गढ़ या हवेली में लाया जाता और उसके साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार किया जाता था, जैसे - काठ में डाल देना, भूखा रखना आदि दण्ड - उपाय, जो एक जघन्य अपराधी के खिलाफ भी प्रयोग में नहीं लिए जाते थे। गरीब किसान के लिए यह अत्यंत लज्जाजनक किन्तु आक्रोश पैदा करने वाली स्थिति थी। इन सजाओं की कोई सीमा न थी, कोई कानून न था, कोई व्यवस्था न थी और कोई विधि-विधान भी न था। खड़ी खेती कटवा लेना, पशु खुलवाकर हांक ले जाना, घर-गृहस्थी के बर्तन, कपड़े लते उठा लेना और किसान की मुश्कें कसवा देना साधारण बात थी। दाढ़ी-मूछें उखाड़ लेना, भूमि से बेदखल कर देना कोई बड़ी बात न थी। किसान तथा उसके परिजनों को गोली का निशाना तक बनाया जाने लगा था। जागीरदार की हवेली में हाथ का पंखा दलितों से खिंचवाया जाता था और थोड़ी चूक करने पर अपशब्द बोले जाते थे।
सामाजिक दमन चक्र
सामाजिक दमन का चक्र कितना गम्भीर था, इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ पिछड़ी जातियों के लोग वहां के सवर्ण जातियों के लोगों के सामने चारपाई पर नहीं बैठ सकते थे। उनके सामने पांचों कपड़े नहीं पहन सकते थे। यह लोग किसी तीर्थ में स्नान भी नहीं कर सकते थे। जागीरदार के घर बेटी पैदाहो गई तो एक मण अनाज की लाग किसान पर थी जिसे 'बाई जामती की लागÓ कहते थे और लड़की की शादी होने तक हर साल गाजर, मूली, शकरकन्द की एक क्यारी किसान को देनी पड़ती थी। नाच-गानों का मेहनताना 5 सेर अनाज ढाढ़ी का व 5 सेर भगतण को किसान को ही देना पड़ता था।
किसान की जाति क्या है
चौधरी छोटूराम ने कहा था कि किसान की जाति उसकी पार्टी है। आज से जो किसान होगा चाहे वह दलित हो या सवर्ण, अगर वह जमींदारा पार्टी से जुड़ा है तो वह जमींदार कहा जाएगा। वह जमींदारा पार्टी का सच्चा सिपाही और जमींदार होगा।
युवा वर्ग व नारियों को उचित प्रतिनिधित्व
चौधरी छोटूराम ने युवावर्ग तथा महिलाओं को राजनीति में उचित स्थान दिया। वे कहते थे कि युवावर्ग तथा महिलाओं के बगैर राजनीति सारहीन है। प्रत्येक चुनावी वर्ष में उम्मीदवारों का बदलाव जरूरी है ताकि अन्य उम्मीदवारों को आने का मौका मिले। बार-बार एक ही व्यक्ति या एक ही परिवार के व्यक्तियों को उम्मीदवार बनाने से समाज में आक्रोश पैदा हो जाता है। जिस प्रकार फसलें फेर-बदल कर बोनी चाहिए, राजनीति भी इस सिद्धान्त से अछूती नहीं। योग्य तथा योग्यता के सिद्धान्त के आधार पर उम्मीदवारी तय की जाए। पढ़े-लिखे उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाए। बदलाव करना नितान्त आवश्यक है।
स्टूडेन्ट्स कान्फे्रंस
सन् 1934 के दिसम्बर महीने में 'अखिल भारतीय जाट स्टूडेन्ट्स कान्फे्रंसÓ का आयोजन मास्टर रतनसिंह के संयोजकता में पिलानी कस्बे में किया गया। कॉलेज के विद्यार्थी तथा प्रोफसरों ने भारी परिश्रम किया। कॉन्फे्रंस का प्रधान सर छोटूराम को बनाया गया व कुंवर नेतराम सिंह स्वागताध्यक्ष थे। सर छोटूराम का जुलूस हाथी पर सज-धज के निकला जिसे देखने को सारा शहर उमड़ पड़ा। चौधरी रामसिंह, ठाकुर झम्मनसिंह, ठाकुर देशराज, सरदार हरलाल सिंह आदि गणमान्य व्यक्ति भी पधारे। विभिन्न प्रान्तों एवं देहातों से बड़ी तादाद में किसान शरीक हुए थे। इस सम्मेलन में युवाओं ने नई जान फूंक दी। सर छोटूराम ने उस वक्त यातायात के साधन ना होते हुए भी जगह-जगह घूमकर किसानों में जागृति पैदा की जिसे यह सामाज कभी भूल नहीं सकेगा। आज भी किसानी और किसान को बचाने के लिए युवावर्ग हिचकोले ले रहा है। अब वह दिन दूर नहीं कि किसान क्रांति आकर रहेगी।

puraane dost, childhood freinds.

कड्यै गऐ बचपन के मित्र.
पाटी कच्छी टुटे लित्र.
मैस्सयां गेल्यां गऐ जोहड पै
काडी 
कच्छी बडगे भित्तर
माचिस के तांश बणाया करदे
नदी पै खेलण जाया करदे
घर तै लुकमा बेच कै दाणे
खा गे खुरमे खिल्ल मखाणे
मिस्री तै मिठे होया करदे
खिल्लां तै फ़िक्के होगे
वँ यार पुराणे रै
बेरा ना कित्त खोगे
बेरा ना कित्त खोगे

पकड लिये फेर स्कूल के रस्ते
हाथ मै तख्ती कांथ बस्ते
गरमी गई फेर आ गया पाला
एक दिन नहा लिऐ एक दिन टाला
पैंट ओर बुरसट मिलगी ताजी
एक दो दिन गए राजी राजी
हाथ जोड फेर रोवण लागे
आज आज घर पै रहण दैयो मां जी
आखयां मै आंसु आए ना
हाम्म थुक लगा कै रोगे
वँ यार पुराणे रै बेरा ना कित्त खो गे
बेरा ना कित्त खो गे 

कालज मै फेर होग्या अडमिस्न
बाहर जाण की थी परमिस्न
रोडवेज मै जाया करदे
नकली पास कटाया करदे
बीस रपुली करकै कट्ठी
ले लिया करदे चा ओर मठी
स्पलैंडर पै मारे गेडे
सैट करली थी दो दो पट्ठी
मास्टर पाठ पठाया करदा
आंख मिच कै सोगे
वँ यार पुराणे रै बेरा ना कित्त खौ गे
बेरा ना कित्त खो गे

वक्त गेल गऐ बदल नजारे
बिखर गऐ सब न्यारे न्यारे
घरां पडया कोए करै नोकरी
घरक्यां नै करी पस्नद छोकरी
शादी करली बणगे पापा
कापी छोडी लिया लफाफा
रोऐ जा सै दिल मरज्याणा
भुल गऐ क्यु टैम पुराणा
"
Karam Dhull" याद करै
क्यु बीज बिघन के बो गो
वँ यार पुराणे रै
बेरा ना कित्त खो गे
बेरा ना कित्त खौ 

पहल्या आल्ले नाम... the names of people of jatland

पहल्या आल्ले नाम...
ज्ञानी सूबे रामफल सवाई होया करते

पहल्या आल्ले नाम भी हाई होया करते

और हर नाम क पीछे एक कारण होया करता

गाम राम के खातर जो उदाहरन होया करता

धोरे जिसके धेला कोन्या
,, नाम किरोड़ी पाता
किताब सिंह भी उन दिना कदे स्कूल नहीं जाता

बड़े भाई क लट्ठ मरता..लछमन सिंह आवारा

शक्ल में जिसके बारा बजरे
, कहते उसने प्यारा
हाथी बरगी देई ले रह्य ,, नाम माडा राम
सही राम के पाया करते सदा ए गलत काम


जिंदगी भर दुःख पाए सुखिया अर खुसीराम

कुते त डर जावे था
, शेरा जिसका नाम

अर दोनु हाथा दान करे
, ताऊ मांगे राम
आये गये का मान करे
,, झगडू जिसका नाम

'' maa '' poem by rana jaat

थोड़े से दिन बाकी रहगे मत बिसरावे आज मने
दो सब्द प्यार के बोल दिया कर न चाहिए घर का राज मने
नो महीने तू रहा कोख में मन्ने बोझा भी न ठाया था
सारा कुनबा ख़ुशी मनावे जब तू घरने आया था
तेरी दादी ने बजाई थाली सारा गाम जगाया था
गीत बाकली छटी पे तेरे कुवे पे ढोल बजाया था
बगाया था तेरी उम्र की खातिर उड़े मुट्ठी भर कै नाज मने
थोड़े से दिन बाकी रहगे मत बिसरावे आज मने
दो सब्द प्यार के बोल दिया कर न चाहिए घर का राज मने

सारी सारी रात जाग के मैं तन्ने सुवाया करती थी
जब तू भूखा होके रोया छाति के लाया करती थी
तेरी मीठी मीठी सुन के बोली मैं खुश हो जाया करती थी
दोनु हाथ पकड़ के तेरे मैं तने चलाया करती थी
तेरी गैला जाया करती थी लिया गोदी के महा भाज मने
थोड़े से दिन बाकी रहगे मत बिसरावे आज मने
दो सब्द प्यार के बोल दिया कर न चाहिए घर का राज मने

जब तू पढ़न जाया करता मन्ने नूहा धुहा कै तयार करा
तेरे काम का एक एक सोदा संघवा संघवा कै मन्ने धरा
हे माँ हे माँ कह रुक्के मारे ना मेरे बिना भी तन्ने सरा
तेरे दुःख मैं रोई और सुख मैं हसी जी ते ज्यादा प्यार करा
कोण सा वो अपराध करा जो भुंडी लागी आज तने
थोड़े से दिन बाकी रहगे मत बिसरावे आज मने
दो सब्द प्यार के बोल दिया कर न चाहिए घर का राज मने

पढ़ लिख कै तू लगा नौकरी प्रसाद बात कै आई थी
रिश्ते आले चक्कर काटे तेरी करदी ब्याह सगाई थी
सारा गाम जिमाया हमने जब नयी भोडिया आई थी
तेरे छोरे नै ले हांडा करती तेरी छोरी मन्ने खिलाई थी
एक एक बात बताई थी दिया सारा घर का राज मने
थोड़े से दिन बाकी रहगे मत बिसरावे आज मने
दो सब्द प्यार के बोल दिया कर न चाहिए घर का राज मने

आया बुढ़ापा सब करतब हारे इब चला भी न जावे सै

न्यारी खाट बिछादी मेरी कोई धोरे भी ना आवे सै
उलटे सीधे तेरे बालक बोले तेरी बहु मन्ने धमकावे सै
जब जब तू भी छो मै बोल्या मेरा लिकड़ कालजा जावे सै
मरी मरी भी बोल पडूँगी दिए इन्द्रजीत आवाज़ मने
थोड़े से दिन बाकी रहगे मत बिसरावे आज मने
दो सब्द प्यार के बोल दिया कर न चाहिए घर का राज मने

'' gareeb '' a haryanvi poem

उथल पुथल मचगी दुनिया माह ,
 निर्धन लोग तबाह होगये 
कोए चीज़ न सस्ती मिलती,

 सबके उच्चे भा होगये 
असली चीज़ न मिले टोही

, सब मा नकलीपन आग्या
बिना मिलावट चेंण पड़े ना

,सब का पापी मन होगया 
दिन धोली ले तार आबरु ,

जिसके धोरे धनं होगया 
निर्धन मरजा तड़प तड़प के,

इतना घोर बिघन होगया 
इज्ज़तदार मरें भूखे ,

बदमाश लफंगे शाह होगे 
बेरोजगारी की हद होगी,

पढ़े लिखे बेकार फिरें
धर्म के ठेकेदार बी ,

भुंडी ते भुंडी कार करें 
कई जनया के कोठी बंगले ,

लाइन लाग रही कारां की 
सडरक पे पड़े कई ,

लाठी बाज रही चौकिदारा की 
खाली जून टल्ले भूख्या की ,

निर्धन लोग बेचारायाँ की उथल पुथल मचगी दुनिया माह ,
निर्धन लोग तबाह होगये !!

याद आगया म्हारा गाम / our village jatland

हाय रे शहर में रहना पानी में अडंगा बहनाभाग दोड़ में कटज्या जिंदगी मिलता ना आराम
बिस्तर के महा पड़े पड़े के याद आगया म्हारा गाम

म्हारे बचपन के दिन थे बड़े निराले

कच्छे पहरा थे हम नाडा आले

खावा थे जामन काले काले

पेड़ा के लरजे थे डाले

दोफारा में हांडा करते लागे था ना घाम

बिस्तर के महा पड़े पड़े के याद आगया म्हारा गाम

खेता के म्हा हम जाया करते

हूड खेल कबड्डी हम नहाया करते

कचरे तोड़ के लाया करते

फोड़ फोड़ के खाया करते

उलटे घरने आया करते होजाती जब शाम

बिस्तर के महा पड़े पड़े के याद आगया म्हारा गाम

रोटी खाके बतलाया करते

फेर कठे होके हम जाया करते

घडवे ठा ठा लाया करते

गाया और बजाया करते

अपना दिल बहलाया करते लागे था ना दाम

बिस्तर के महा पड़े पड़े के याद आगया म्हारा गाम

मेहनत करके जो भी खावेगा

सबके मन में वो बस जावेगा

देवरखाने में जावेगा

परमात्मा भी मिल जावेगा

भगति के म्हा रस पावेगा भला करे तेरा राम

बिस्तर के महा पड़े पड़े के याद आगया म्हारा गाम

aaj ka behya / Jatland Ke Kware Bhaiya Khatir


आच्छा समय गया पर दिल मं असर उ
'की परछाइयाँ का 
घणा नहीं पर ज़िकर करूँ दो चार रसम मनभाईयां का 


पहल्यां देखैं
, फेर पक्की, फेर गोद भरण नै जावैं सै
देखैं बाट पडोसी कित वो खूग्या दौर सगाईयाँ का 


बान बैठ बनवाड़े खाते मटना रगड़ न्हवाया करती 

इब डेंट-पेंट कर नक्शा बदलैं 
'पार्लर' ब्याहले भाईयाँ का

ब्याह तै पहल्यां बीस रोज
, ज्यब गीत लुगाई गाया करती 
इब कार्ड पै छपता डीजे संग 
'लेड़ीज संगीत' लुगाइयां का 

ब्याह मं म्हिन्या पहल्यां आकै बुआ-बहाण रंग लाया करती 

इब होटल म्हां तै मुड़ ज्यां पैर पडे ना घर माँ-जाईयाँ का


इब छोरे के ब्याह मं भी घलता कन्यादान 
'रिशैपशन' पै 
लाडडू ज्यब दिखण दें सै ज्यब आले नेग बधाईयाँ का 


लोटा लेकै गरम दूध का बहू चौबारे जाया करती 

इब अगले दिन जां शिमला सर पै क़र्ज़ खड्या हलवाईयां का 


सात जनम के बंधन मं बंध धरम की डगर चल्या करते 

इब कर कै शक लें जूत बजा फेर चालै दौर गव्हाईयां का 


पैसा-मस्ती-मौज सोच या खागी सब संस्कारां नै 

आछा-भला बखत था म्हारी दादी
, माँ और ताइयां का

जेठ की दुपहरी / jeth ki dupahri

जेठ की दुपहरी कसुता घाम था
पड़ा
 चौबारे में कर रहा आराम थारेडिओ पे रागनी बजा रहा था
गेल
 गेल खुद भी गा रहा थाबिजली चली गयी मेरा जी फुकग्या

छत
 का पंखा लुढ़क लुढ़क के रुकग्याफेर मेरे बीडी की याद आई
बण्डल
 देखा तो वे भी टूटी हुयी पाई
दुखी
 होगया था पड़ा पड़ा
फेर बीडी
 लेन दुकान पे चाल पड़ा
गाल
 कती सुनी पड़ी थी
किते ट्राली किते बुग्गी कड़ी थी

मैं अपनी मस्ती में जा रहा था


अर गुलाबो आली रागनी गा रहा था

पीछे ते किसे ने आवाज मारी

मन्ने देखा गोबर में हाथ सांधे
 खड़ी थी दुलारीमैं बोला हा बोल के काम से


नु
 बोली हाडे आजा ने कितना कसुता घाम से
मैं
 सर पे गेर रहा था तोलिया
 अपने घेर में बडगी मैं भी पाछे पाछे हो लिया
मन्ने
 कही इब तो बतादे

वा बोली मेरा
 ओढना संघवा दे
मैं ओढना
 संघवान लाग्या
अर
 गलती ते मेरा हाथ उसके लाग्या
वा तो
 रोण लाग्गी

इतने
 में उसकी भाभी आगीवे दोनु मेरे ते लड़न लाग्गी
मेरी
 आंख आगे अँधेरी सी छागी
मैं बोला मन्ने
 माफ़ कर दो
और
 इस मामले ने हाडे  साफ कर दोवे बोली तेरा इलाज बंधवाना पड़ेगा
के तो
 म्हारा काम कर ना तो तू पिटवाना पड़ेगा

मैं बोला
 जो कहोगी वो करूँगा
कहो तो
 थारा पानी भी भरूँगावे बोली ठीक से या बात किसे ते ना बताइए
और
 यो गोबर पड़ा से सारे ने पाथ के जाइये

मैं
 बाजु संघवा के लाग्या
दो
 घंटे घाम में गोबर पाथा फेर लिकड़ के भाग्याइब जब भी दुलारी दिखे से मैं रास्ता बदल जाऊ सु
कड़े
 फेर वो हे काम बने पहला हे टल जाऊ सु

महिमा जाटों की / great jaat

गुण गाओ भाई भोले जाटों के, इनका हृदय विशाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥ (टेक)

अन्नदाता सब इसको कहते पर मानते इसको पिछाड़ी
भेली दे दे पर गन्ना ना दे - देखो रे, कैसा है अनाड़ी
सब को रोटी कपड़ा देता तो खुद क्यों ना बना अगाड़ी ?
ये सरकार सबको भत्ता देती, क्यूं इसे ना मिलती दिहाड़ी ?

कब आयेंगे छोटूराम चरणसिंह करने इनको निहाल ?
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल ॥१॥

छोटूराम जी कहा करते थे - ए मेरे भोले किसान
सही जिन्दगी चाहता है तो बस कर ले ये दो काम
अपनी वाणी पर काबू कर के सुधार ले अपनी जुबान
और सीख ले कैसे होती है अपने दुश्मन की पहचान

फिर तू देश पर राज करेगा और रहेगा नहीं कंगाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल ॥२॥

चरणसिंह ने भी खूब समझाया कि काम नहीं कोई छोटा
एक खेती में मत पड़ा रह, कर ले कोई धंधा छोटा-मोटा
पढ़ने लिखने और काम-धंधे से भाग जायेगा तेरा टोटा
नहीं तो कोसता रह जायेगा - हाय, मेरा तो कर्म था खोटा

बैठ अकेले आत्म-मंथन कर, अपने दिल को ले खंगाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल ॥ ३॥

अब सुनो कहानी कैसे हैं ये अपने जाटलैंड के जाट
यू.पी. वाले कहते - हम सब के फूफा, हमारे निराले ठाठ
हरयाणा के बड़े चौधरी - बोले, भला ये भी हैं कोई जाट ?
यू.पी. का जाट, पत्थर का बाट, जितनी बै तोलो घाट-ही-घाट !

इस जाटलैंड में ज्ञानी बहुतेरे पर करते ओछे सवाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥४॥

राजस्थानियों की बड़ी-बड़ी मूंछें, सारे के सारे लंबू 
ठाकुरों को बोले तुम हो "छतरी" और हम हैं "तंबू"
ठाकुर डर-डर कर यूं कहते हैं - हे मेरे शंकर-शंभू -
कोई जाट बने ना "सी-एम" - ये तो दे देंगे हमें बंबू !

भाई, मेल-जोल रख लो औरों से, नहीं तो रहोगे बेहाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥५॥

दिल्ली के जाट - समझते थे खुद को महरौली की लाट
जमीनें छिन गई, काम रहा ना, सब हो गया बाराह-बाट 
मालिक बन गए 'रिफूजी' यहां के, देख लो उनके ठाठ-बाट
फिर भी नहीं समझे तुम - एक दूसरे की करो खड़ी खाट 

संभल जाओ, अब भी वक्त है, नहीं तो रहोगे बेहाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥६॥

बेकार के धागे शुरू करते हो जिनका सिर ना पैर
किसी की बहू है गैर-जाटनी, तुम्हें क्यूं उससे बैर ?
आगे राज किस का आयेगा - टूट पड़ेगा क्या कहर ?
वर्तमान की चिन्ता कर लो, इसी में है तुम्हारी खैर 

फिक्र करो क्यूं लूट रहे हैं हमको ये विदेशी दलाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥७॥

बहस करो उनके बारे में - जो सीमा की करें रखवाली 
उनको होश नहीं - कैसे हैं उनके घरवाले और घरवाली
अपने सीनों पर गोली खाते - घर में फिर भी कंगाली
और ये सरकार विचार न करती - क्यूं है उनकी बदहाली ?

पढ-पढ कर ये धागे तुम्हारे मेरे दिल में उठें हिलाल ।
एक बार अपने दिल से पूछ लो - हो ना धरती के लाल ? ॥८॥

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 लेखक - दीप दहिया

haryanvi poem " susraad"

मैं गया सुसराड़
नया
 कुर्ता गाड़
दाढ़ी
 बनवाई बाल रंग्वाए
रेहड़ी
 पर ते संतरे तुलवाए
हाथ
 मैं दो किलो फ्रूट
मैं
 हो रया सुटम सूट
फागन
 का महिना था
... 
 रया पसीना था
पोहंच
 गया गाम मैं
मीठे
 मीठे घाम मैं
सुसराड़
 का टोरा था
मैं
 अकड में होरा था
साले
 मिलगे घर के बाहर
बोले
  रिश्तेदार  रिश्तेदार
बस
 मेरी खातिरदारी शुरू होगी
रात
 ने खा पीके सोगया तडके मेरी बारी शुरू होगी
सोटे
 ले ले शाहले आगी
मेरे
 ते मिठाईया के पैसे मांगन लागी
दो
 दो चार चार सबने लगाये
पैसे
 भी दिए और सोटे भी खाए
साली
 भी मेरी मुह ने फेर गी
गाढ़ा
 रंग घोल के सर पे गेर गी
सारा
 टोरा होगया था ढिल्ला ढिल्ला
गात
 होगया लिल्ला लिल्ला गिल्ला गिल्ला
रहा
 सहा टोरा साला ने मिटा दिया
भर
 के कोली नाली में लिटा दिया
साँझ
 ताहि देहि काली आँख लाल होगी
बन्दर
 बरगी मेरी चाल होगी
बटेऊ
 हाडे तो नु हे सोटे खावेगा
बता
 फेर होली पे हाडे आवेगा
मैं
 हाथ जोड़ बोल्या या गलती फेर नहीं दोहराऊंगा
होली
 तो के मैं थारे दिवाली ने भी नहीं आउंगा

east or west jat is best

जाट करै ना दोस्ती, जाट करै ना प्यार
जो साचा इंसान हो, वो-ए इसका यार ।

चुगलखोर और दुतेड़े दुश्मन इनके खास
चाहे पायां पड़े रहो, कोन्यां आवैं रास
जाट मोहब्बत का भूखा, प्यारा दे सै मार -
जो साचा इंसान हो, वो-ए इसका यार ।

अपनी औरत को भाळै, पीटै बेशक रोझ
पर और कोए कुछ बोल दे, मिटा दे उसका खोज
इसकी नफरत और प्रेम का पावै कोन्या पार -
जो साचा इंसान हो, वो-ए इसका यार ।

मुंह की अपनी काढ दे, जै कोए आवै मदद करण
मरौड़ कसूती सै धिखे, जिब्बै दे दे जान
जी मैं आवै वो-ए करैगा, कोन्यां मानै हार -
जो साचा इंसान हो, वो-ए इसका यार ।

ऊपर तैं जणूं पाथर हो, भीतर जणूं गुलाब
एक मिनट में साळा कह दे, चाहे साहमी हो नवाब !
इसकी माया न्यारी सै, यो लाम्बी करै उडार -
जो साचा इंसान हो, वो-ए इसका यार ।

भेल्ली दे दे, ना दे गंडा, इसका इसा मिजान
रूस ग्या तै रूस ग्या, कोन्यां जा मुंह-काण
भगवानां नै मान ली, कई बै इस तैं हार
जो साचा इंसान हो, वो-ए इसका यार ।

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मनीष राणा रोहतक

god of jats/farmer sir choturam

Chaudhri Sir Chhotu Ram


In my opinion no better assessment of his personality and services to his fellow beings can be made than the one which his colleagues and contemporary legislators and Ministers of United Punjab spontaneously expressed in the Punjab Legislative Assembly on Monday the 19th February , 1945 , after his death .
Premier (The Honorable Malik Khizar Hayat ) : Sir, it is with considerable feelings that I rise to make this reference to the demise of a respected colleague and a friend , the late Honorable Chaudhri Sir Chhotu Ram . His sudden death was a great shock to his friends and admirers all over the province. The shock was intense because the tragic end came when we were getting better news and looking forward to his return to duties. Actually, the collapse came just two days before the date which the doctors had fixed for his resuming duty. Therefore this was a great shock to all of us.
As to Chaudhari Sir Chhotu Ram’s life, his later life is known to each and every one, even to the very children in the villages and cities . He was born in 1881 in a peasant home at Garhi Sampla , in Rohtak District , the village and the district which he made famous by his subsequent public service . He had to face many difficulties and surmount obstacles during the earlier portion of his life but his usual perseverance, ability and zeal , he got over all of them and graduated in law. First of all to the best of my knowledge he practiced as a lawyer at Agra and then shifted to his home district Rohtak in 1912 . He soon found that legal work was not the only thing which interested him and he began to take an interest in wider affairs of local politics and education. He started founding schools and many of them exist today to his great memory. Later on he became a popular figure in the local district board and he started a party on non-communal and economics lines. He did very well in the district board and gained popularity all over the district. Later , his chance came when he was returned to the old Legislative Council and he was appointed a Minister in 1924 or thereabouts. His work was such that his ability and his zeal and enthusiasm won him, he made his voice felt in the wider provincial field and he was soon found to be the popular defender of the rights of the Zamindars. He was the co-founder of the Unionist party with the late lamented Sir Fazle-i-Husain and worked as his first lieutenant and righthand man till Mian Sahib left to join the Central Government. Sir Chhotu Ram then became the de facto and de jure leader of the Unionist Party for a long time in the old legislative Council. If I am not wrong, his stand for his ideals was so strong that at one time he had only one Hindu follower left. But still he stuck to his guns and he had the unique distinction of being the only Hindu leading a party with a majority of Muslims. Before he was returned to power in 1936 it is well known that ministership was offered him many times. It is also well known that he could have been the leader of certain other sections which were ready to have him as their leader. But he said, “No, I will not have anything to do either with the ministership or leadership” unless it is Unionist lines and according to the programme that he had in view. His chance came in 1937 when the party of which he had been the leader was returned to power. He was the appointed Minister of Development and later as Minister of Revenue which office he held till the day of his death.
His work in the interests of the poor of all classes, and particularly the zamindars, is well known. The part he played in getting the agrarian legislation through in this House is well known. Now could I fail to mention what he did under these difficult circumstances for communal harmony. His life work can be seen here on these benches. If people of these various communities and classes could be welded together, the cementing factors were the great personalities of Sir Fazl-i-Husain and the Honorable Chaudhri Sir Chhotu Ram. His work in the interest of communal harmony will never be forgotten and it is well known that he travelled day and night, motoring hundreds of miles, to see the poor and redress their grievances. It was that, I think, which mostly affected his health. Doctors advised him to take rest, but he could not. He went on making journeys all in the interests of the cause so dear to his heart and in the interests of the poor. He saved nothing, as is now well known to all. All he earned sent to the furtherance of the cause he believed in, or as stipends to the poor. His eloquence was such that thousands came to hear him from great distances, walking on foot. He lectured for hours and kept the audience spell bound.
He was a statesman with a dynamic personality. His contribution to the life of the province will be long remembered. He has passed away but the ideals and the work he has done shall remain forever. In him the province has lost a great Punjabi and myself a personal friend. His loss is all the greater now when his constructive brain was needed for the service of his country. Further generation of Punjabis will always remember the life, work and the services rendered by the late Sir Chhotu Ram to the cause of the Punjab.
With these words I will ask, you Mr. Speaker, to convey the sympathies and the condolence of this House to the bereaved family of the late Chaudhri Sahib.

Dr. Sheikh Muhammad Alam ( Rawalpindi Division Towns, Muhammadan, Urban) (Urdu) : Sir, now after a very long time I rise to address this August House on a very unpleasant subject regarding which condolences have to be expressed orally. I wish to express my feelings in a few simple words about this un fortunate event. People belonging to all shade of opinion have showered encomiums on the late Chaudhri Sir Chhotu Ram. Among those who paid a glowing tribute to the memory of the late Chaudhri Sir Chhotu Ram, are included the leaders of the parties holding the view that religion should not interfere with politics and, also the leaders of those parties who believe that religion should interfere with the politics. The leaders of different parties, namely the parties who claim themselves to be the well wishers of the downtrodden zamindars and partied who seem to be desirous of ameliorating the condition of the poor laboring classes and also those person who are said to be the leaders of non-agriculturists have associated with us in praising the late Sir Chhotu Ram. I do not want to say anything in connection with that these leaders of different parties have expressed about the greatness of Sir Chhotu Ram, but one thing has been quite clear from the speeches made so far that as a man Sir Chhotu Ram had something distinguished in him and I would say this was the only quality which had always appealed to me very strongly. It is only due to that quality that even today I stand to praise him in this House, not as a Unionist, not as an agriculturist, and not as a nationalist but as a man. He had indeed, something very high in him as a man which could distinguish him from others and only because of that quality he was so popular with us. I may also submit that on account of that very quality people belonging to even different classes are now showering encomiums on him and are deeply grieved on his sad demise. Now putting aside all unnecessary remarks that have been made on the floor of the House I would again submit that Sir Chhotu Ram, as a man held a very distinguished position among us. His friends and even opponents while presenting him in different shades, have also admitted the fact that his qualities of head and heart had always been too great to be praised and his truthful nature and forceful character had always commanded respect from them. He was strongly opposed to capitalism and being fond of the poor he would always take up cudgels for them. His life was a constant struggle for ameliorating the condition of the poor and downtrodden zamindars and none of us can deny the fact that throughout his life he had been endeavoring for the betterment of a class no matter whether the majority of that class were Muslims or Hindus. He did well for the class he was out to help. He protected their rights. He infused new blood into them. He got their rights acknowledged by the House and did everything possible for them in order to keep their heads high. He had many qualities but two things which struck me most were Chhotu Ram as a man and as one opposed to capitalism.
Now, Sir, I wish that our sympathy should be conveyed not only to the bereaved members of the family of the late Sir Chhotu Ram but it ought to be conveyed to the poor zamindars living in huts and even to those poor kisans who can hardly make both ends meet, with whom the late Minister had always been friendly. However I would like to ask the Government to convey our feelings to the foes of the late Sir Chhotu Ram as well.
My honorable friend Lala Bhim Sen Sachar, Leader of the Opposition, has aptly said that on account of his forceful personality Sir Chhotu Ram could not help creating friends and foes as anyone with a forceful personality was bound to have. I quite agree with him, but I would say that there are different types of foes. There are foes whose enmity is based on honesty while on the other hand there are foes whose animosity take root in malice, Sir Chhotu Ram had the second type os foes also. Let me in this connection point out that there were certain papers whose publication and livelihood mainly depended upon abusing Sir Chhotu Ram, and by throwing mud on him they used to get money. Now obviously the death of Sir Chhotu Ram has given s fatal blow to their profession. I pity those papers very much, because now they would not be able to grab money which they have been doing so far. It pained me to say that even the papers taking upon themselves the responsibility of protecting the rights of the zamindars have been working on the same lines as adopted by the papers whose source of income, as I have pointed out, mainly depended upon abusing the late Minister.
I have every sympathy with the papers whose income, on account of the death of Sir Chhotu Ram, has stopped for ever.
Before I resume my seat I would say that Sir Chhotu Ram was really a great man and I held him in great esteem, not as a Unionist but as a man as a staunch opponent of capitalism, as a great well wishers and sympathizer of the poor zamindars. In the end let me express great sympathy with the bereaved relatives and the poor zamindars, as well as the pitiable foes of late Sir Chhotu Ram whose death has put an end to their income.