"जाट लोग औरंगजेब के डर से मुस्लिम बन गये"
ये बात गलत ही नहीँ बल्कि हास्याद्पद भी है। यह बात कहने वाले शायद ही इस बात का प्रमाण दे पायेँ।
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पहली बात तो ये कि औरंगजेब के काल मेँ केवल अपर दोआब और हरयाणा यानि खापलैण्ड के जाट ही मुस्लिम बने।
और इसका सबसे बड़ा कारण रहा इस्लाम के नाम पर मिलने वाली सुख सुविधाएं।
जाट किसान थे और और इस्लाम के नाम पर मिलने वाली सुविधांए जैसे जागीरदारी, कर मेँ छूट, दरबार मेँ मिलने वाले शाही सम्मान आदि ने जाटोँ को प्रभावित किया।
ऐसी बात नहीँ है कि वे हिन्दु धर्म से पीडित थे या सम्मान नहीँ मिलता था। जाट यंहा के मालिक थे , वो जैसा चाहते थे वैसा होता था।
और औरंगजेब की इतनी हिम्मत नहीँ थी जो खाप के मामलोँ मेँ दखल दे सके। औरंगजेब के अत्याचारोँ की कहानी खापलैण्ड पर बिल्कुल फिट नहीँ हो सकती।
अगर औरंगजेब जाटोँ को जबरदस्ती मुस्लिम बनाने की कोशिश करता तो खाप पंचायते उसको दिल्ली से भगा देती या विरोध तो जरूर करती और एक भी जाट को मुस्लिम ना बनने देती।
कुछ ने सवा मण जनेऊ की थ्योरी गढ़ी, पर जाट जनेऊ नहीँ पहनते थे।
औरंगजेब के अत्याचार की थ्योरी खापलैँड पर बिल्कुल लागू नहीँ होती।
इस बात का प्रचार भाटोँ और जोगियोँ ने किया कि जाट डर कर मुस्लिम बन गये।
सत्य तो ये है कि जाट बहुत चतुर थे और वे धर्म को गहनता से नहीँ मानते थे, इसलिए इसमेँ कोई शक नहीँ कि उन्होने सुविधाऔँ का फायदा उठाने के लिए इस्लाम अपना लिया हो। और अन्य जाटोँ ने इसलिए इनका विरोध नहीँ किया , अगर अन्य जाट भाईयोँ को फायदा होता हो तो विरोध किस बात का??
जबरदस्ती वाली दलील समर्थ गुरु रामदास(दक्षिण का ब्राह्मण) और उसके चेले जोगियोँ ने शुरु की, उसने जाटोँ को धार्मिक कट्टर बनाने के लिए प्रयास किये, और धर्म परिवर्तन को गलत बताया।
इतिहासकार डा. गिरीश चंद्र द्विवेदी ने भी जबरदस्ति वाली बात को गलत माना और कहा कि जबरदस्ति से जाट का धर्म परिवर्तन असंभव है। अगर जबरदस्ती की जाती तो जाट का मुस्लिम बनना बिल्कुल असंभव था।
जाट कहीँ का भी हो पर उनमेँ कुछ गुण समान होते है जैसे विद्रोही स्वभाव, हठ यानी जिद्दीपन, अपने कानून मानना आदि।
कुछ विरोधियोँ ने भी इस कहावत को माना कि " बाल हठ तोड़ी जा सकती है पर जाट हठ नहीँ"।
ये बात गलत ही नहीँ बल्कि हास्याद्पद भी है। यह बात कहने वाले शायद ही इस बात का प्रमाण दे पायेँ।
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पहली बात तो ये कि औरंगजेब के काल मेँ केवल अपर दोआब और हरयाणा यानि खापलैण्ड के जाट ही मुस्लिम बने।
और इसका सबसे बड़ा कारण रहा इस्लाम के नाम पर मिलने वाली सुख सुविधाएं।
जाट किसान थे और और इस्लाम के नाम पर मिलने वाली सुविधांए जैसे जागीरदारी, कर मेँ छूट, दरबार मेँ मिलने वाले शाही सम्मान आदि ने जाटोँ को प्रभावित किया।
ऐसी बात नहीँ है कि वे हिन्दु धर्म से पीडित थे या सम्मान नहीँ मिलता था। जाट यंहा के मालिक थे , वो जैसा चाहते थे वैसा होता था।
और औरंगजेब की इतनी हिम्मत नहीँ थी जो खाप के मामलोँ मेँ दखल दे सके। औरंगजेब के अत्याचारोँ की कहानी खापलैण्ड पर बिल्कुल फिट नहीँ हो सकती।
अगर औरंगजेब जाटोँ को जबरदस्ती मुस्लिम बनाने की कोशिश करता तो खाप पंचायते उसको दिल्ली से भगा देती या विरोध तो जरूर करती और एक भी जाट को मुस्लिम ना बनने देती।
कुछ ने सवा मण जनेऊ की थ्योरी गढ़ी, पर जाट जनेऊ नहीँ पहनते थे।
औरंगजेब के अत्याचार की थ्योरी खापलैँड पर बिल्कुल लागू नहीँ होती।
इस बात का प्रचार भाटोँ और जोगियोँ ने किया कि जाट डर कर मुस्लिम बन गये।
सत्य तो ये है कि जाट बहुत चतुर थे और वे धर्म को गहनता से नहीँ मानते थे, इसलिए इसमेँ कोई शक नहीँ कि उन्होने सुविधाऔँ का फायदा उठाने के लिए इस्लाम अपना लिया हो। और अन्य जाटोँ ने इसलिए इनका विरोध नहीँ किया , अगर अन्य जाट भाईयोँ को फायदा होता हो तो विरोध किस बात का??
जबरदस्ती वाली दलील समर्थ गुरु रामदास(दक्षिण का ब्राह्मण) और उसके चेले जोगियोँ ने शुरु की, उसने जाटोँ को धार्मिक कट्टर बनाने के लिए प्रयास किये, और धर्म परिवर्तन को गलत बताया।
इतिहासकार डा. गिरीश चंद्र द्विवेदी ने भी जबरदस्ति वाली बात को गलत माना और कहा कि जबरदस्ति से जाट का धर्म परिवर्तन असंभव है। अगर जबरदस्ती की जाती तो जाट का मुस्लिम बनना बिल्कुल असंभव था।
जाट कहीँ का भी हो पर उनमेँ कुछ गुण समान होते है जैसे विद्रोही स्वभाव, हठ यानी जिद्दीपन, अपने कानून मानना आदि।
कुछ विरोधियोँ ने भी इस कहावत को माना कि " बाल हठ तोड़ी जा सकती है पर जाट हठ नहीँ"।