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Wednesday, June 18, 2014

haryanvi poem " susraad"

मैं गया सुसराड़
नया
 कुर्ता गाड़
दाढ़ी
 बनवाई बाल रंग्वाए
रेहड़ी
 पर ते संतरे तुलवाए
हाथ
 मैं दो किलो फ्रूट
मैं
 हो रया सुटम सूट
फागन
 का महिना था
... 
 रया पसीना था
पोहंच
 गया गाम मैं
मीठे
 मीठे घाम मैं
सुसराड़
 का टोरा था
मैं
 अकड में होरा था
साले
 मिलगे घर के बाहर
बोले
  रिश्तेदार  रिश्तेदार
बस
 मेरी खातिरदारी शुरू होगी
रात
 ने खा पीके सोगया तडके मेरी बारी शुरू होगी
सोटे
 ले ले शाहले आगी
मेरे
 ते मिठाईया के पैसे मांगन लागी
दो
 दो चार चार सबने लगाये
पैसे
 भी दिए और सोटे भी खाए
साली
 भी मेरी मुह ने फेर गी
गाढ़ा
 रंग घोल के सर पे गेर गी
सारा
 टोरा होगया था ढिल्ला ढिल्ला
गात
 होगया लिल्ला लिल्ला गिल्ला गिल्ला
रहा
 सहा टोरा साला ने मिटा दिया
भर
 के कोली नाली में लिटा दिया
साँझ
 ताहि देहि काली आँख लाल होगी
बन्दर
 बरगी मेरी चाल होगी
बटेऊ
 हाडे तो नु हे सोटे खावेगा
बता
 फेर होली पे हाडे आवेगा
मैं
 हाथ जोड़ बोल्या या गलती फेर नहीं दोहराऊंगा
होली
 तो के मैं थारे दिवाली ने भी नहीं आउंगा