गुण गाओ भाई भोले जाटों के, इनका हृदय विशाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥ (टेक)
अन्नदाता सब इसको कहते पर मानते इसको पिछाड़ी
भेली दे दे पर गन्ना ना दे - देखो रे, कैसा है अनाड़ी
सब को रोटी कपड़ा देता तो खुद क्यों ना बना अगाड़ी ?
ये सरकार सबको भत्ता देती, क्यूं इसे ना मिलती दिहाड़ी ?
कब आयेंगे छोटूराम चरणसिंह करने इनको निहाल ?
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल ॥१॥
छोटूराम जी कहा करते थे - ए मेरे भोले किसान
सही जिन्दगी चाहता है तो बस कर ले ये दो काम
अपनी वाणी पर काबू कर के सुधार ले अपनी जुबान
और सीख ले कैसे होती है अपने दुश्मन की पहचान
फिर तू देश पर राज करेगा और रहेगा नहीं कंगाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल ॥२॥
चरणसिंह ने भी खूब समझाया कि काम नहीं कोई छोटा
एक खेती में मत पड़ा रह, कर ले कोई धंधा छोटा-मोटा
पढ़ने लिखने और काम-धंधे से भाग जायेगा तेरा टोटा
नहीं तो कोसता रह जायेगा - हाय, मेरा तो कर्म था खोटा
बैठ अकेले आत्म-मंथन कर, अपने दिल को ले खंगाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल ॥ ३॥
अब सुनो कहानी कैसे हैं ये अपने जाटलैंड के जाट
यू.पी. वाले कहते - हम सब के फूफा, हमारे निराले ठाठ
हरयाणा के बड़े चौधरी - बोले, भला ये भी हैं कोई जाट ?
यू.पी. का जाट, पत्थर का बाट, जितनी बै तोलो घाट-ही-घाट !
इस जाटलैंड में ज्ञानी बहुतेरे पर करते ओछे सवाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥४॥
राजस्थानियों की बड़ी-बड़ी मूंछें, सारे के सारे लंबू
ठाकुरों को बोले तुम हो "छतरी" और हम हैं "तंबू"
ठाकुर डर-डर कर यूं कहते हैं - हे मेरे शंकर-शंभू -
कोई जाट बने ना "सी-एम" - ये तो दे देंगे हमें बंबू !
भाई, मेल-जोल रख लो औरों से, नहीं तो रहोगे बेहाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥५॥
दिल्ली के जाट - समझते थे खुद को महरौली की लाट
जमीनें छिन गई, काम रहा ना, सब हो गया बाराह-बाट
मालिक बन गए 'रिफूजी' यहां के, देख लो उनके ठाठ-बाट
फिर भी नहीं समझे तुम - एक दूसरे की करो खड़ी खाट
संभल जाओ, अब भी वक्त है, नहीं तो रहोगे बेहाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥६॥
बेकार के धागे शुरू करते हो जिनका सिर ना पैर
किसी की बहू है गैर-जाटनी, तुम्हें क्यूं उससे बैर ?
आगे राज किस का आयेगा - टूट पड़ेगा क्या कहर ?
वर्तमान की चिन्ता कर लो, इसी में है तुम्हारी खैर
फिक्र करो क्यूं लूट रहे हैं हमको ये विदेशी दलाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥७॥
बहस करो उनके बारे में - जो सीमा की करें रखवाली
उनको होश नहीं - कैसे हैं उनके घरवाले और घरवाली
अपने सीनों पर गोली खाते - घर में फिर भी कंगाली
और ये सरकार विचार न करती - क्यूं है उनकी बदहाली ?
पढ-पढ कर ये धागे तुम्हारे मेरे दिल में उठें हिलाल ।
एक बार अपने दिल से पूछ लो - हो ना धरती के लाल ? ॥८॥
.
लेखक - दीप दहिया
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥ (टेक)
अन्नदाता सब इसको कहते पर मानते इसको पिछाड़ी
भेली दे दे पर गन्ना ना दे - देखो रे, कैसा है अनाड़ी
सब को रोटी कपड़ा देता तो खुद क्यों ना बना अगाड़ी ?
ये सरकार सबको भत्ता देती, क्यूं इसे ना मिलती दिहाड़ी ?
कब आयेंगे छोटूराम चरणसिंह करने इनको निहाल ?
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल ॥१॥
छोटूराम जी कहा करते थे - ए मेरे भोले किसान
सही जिन्दगी चाहता है तो बस कर ले ये दो काम
अपनी वाणी पर काबू कर के सुधार ले अपनी जुबान
और सीख ले कैसे होती है अपने दुश्मन की पहचान
फिर तू देश पर राज करेगा और रहेगा नहीं कंगाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल ॥२॥
चरणसिंह ने भी खूब समझाया कि काम नहीं कोई छोटा
एक खेती में मत पड़ा रह, कर ले कोई धंधा छोटा-मोटा
पढ़ने लिखने और काम-धंधे से भाग जायेगा तेरा टोटा
नहीं तो कोसता रह जायेगा - हाय, मेरा तो कर्म था खोटा
बैठ अकेले आत्म-मंथन कर, अपने दिल को ले खंगाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल ॥ ३॥
अब सुनो कहानी कैसे हैं ये अपने जाटलैंड के जाट
यू.पी. वाले कहते - हम सब के फूफा, हमारे निराले ठाठ
हरयाणा के बड़े चौधरी - बोले, भला ये भी हैं कोई जाट ?
यू.पी. का जाट, पत्थर का बाट, जितनी बै तोलो घाट-ही-घाट !
इस जाटलैंड में ज्ञानी बहुतेरे पर करते ओछे सवाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥४॥
राजस्थानियों की बड़ी-बड़ी मूंछें, सारे के सारे लंबू
ठाकुरों को बोले तुम हो "छतरी" और हम हैं "तंबू"
ठाकुर डर-डर कर यूं कहते हैं - हे मेरे शंकर-शंभू -
कोई जाट बने ना "सी-एम" - ये तो दे देंगे हमें बंबू !
भाई, मेल-जोल रख लो औरों से, नहीं तो रहोगे बेहाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥५॥
दिल्ली के जाट - समझते थे खुद को महरौली की लाट
जमीनें छिन गई, काम रहा ना, सब हो गया बाराह-बाट
मालिक बन गए 'रिफूजी' यहां के, देख लो उनके ठाठ-बाट
फिर भी नहीं समझे तुम - एक दूसरे की करो खड़ी खाट
संभल जाओ, अब भी वक्त है, नहीं तो रहोगे बेहाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥६॥
बेकार के धागे शुरू करते हो जिनका सिर ना पैर
किसी की बहू है गैर-जाटनी, तुम्हें क्यूं उससे बैर ?
आगे राज किस का आयेगा - टूट पड़ेगा क्या कहर ?
वर्तमान की चिन्ता कर लो, इसी में है तुम्हारी खैर
फिक्र करो क्यूं लूट रहे हैं हमको ये विदेशी दलाल ।
सच पूछो तो सही मायनों में ये हैं धरती के लाल॥७॥
बहस करो उनके बारे में - जो सीमा की करें रखवाली
उनको होश नहीं - कैसे हैं उनके घरवाले और घरवाली
अपने सीनों पर गोली खाते - घर में फिर भी कंगाली
और ये सरकार विचार न करती - क्यूं है उनकी बदहाली ?
पढ-पढ कर ये धागे तुम्हारे मेरे दिल में उठें हिलाल ।
एक बार अपने दिल से पूछ लो - हो ना धरती के लाल ? ॥८॥
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लेखक - दीप दहिया